हर मंगलवार अलीमा ख़ान इस्लामाबाद से करीब एक घंटे की दूरी पर स्थित अडियाला जेल जाती हैं. यह वही सख़्त सुरक्षा वाली जेल है जहां उनके भाई और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान सज़ा काट रहे हैं.
उनकी गाड़ी पहुंचने से पहले ही पुलिस रास्ते बंद कर देती है. जेल के फाटक से कई किलोमीटर पहले तक चेकपोस्ट लगे होते हैं. वर्दी और सादे कपड़ों में मौजूद अधिकारी गाड़ियों को रोकते हुए तय करते हैं कि किसे आगे जाने देना है और किसे रुकना होगा.
गर्मी और तनाव से भरा माहौल है, फिर भी यहां हर बार भीड़ जुट जाती है. गहरे नीले रंग की सलवार-कमीज़ और काली सदरी पहने एक शख़्स कैमरे के सामने उसी अंदाज़ में खड़ा होता है जैसे इमरान ख़ान. पास ही कराची से आई एक बुज़ुर्ग महिला बताती हैं कि वो हर हफ्ते अपना घर-परिवार छोड़कर सिर्फ़ इन जेल की दीवारों के बाहर खड़ी होने आती हैं.
भीड़ में सब इमरान ख़ान की बहन अलीमा ख़ान का इंतज़ार कर रहे हैं. उनके पास पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ में कोई आधिकारिक पद नहीं है, लेकिन अब वही इमरान और बाहरी दुनिया के बीच सबसे अहम कड़ी हैं. अलीमा अपने भाई के शब्द, उनकी चिंता और उनकी जद्दोजहद को लोगों के सामने रखती हैं.
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जब वो कार से उतरती हैं, लोग उनके लिए आगे बढ़ते हैं. पत्रकारों और व्लॉगर्स से वो कहती हैं, "मेरे भाई सबसे बड़ी पार्टी के चेयरमैन हैं. जल्द ही उन्हें पूरी तरह अलग-थलग कर दिया जाएगा."
अडियाला जेल के बाहर उनकी मौजूदगी कई बार माहौल को राजनीतिक ड्रामे में बदल देती है. पत्रकार, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, यूट्यूबर्स और पार्टी के कार्यकर्ता ये देखने आते हैं कि उन्हें अपने भाई इमरान ख़ान से मिलने दिया जाता है या नहीं. ज़्यादातर बार उन्हें अनुमति नहीं मिलती.
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इमरान ख़ान जुलाई 2018 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई और कमजोर अर्थव्यवस्था को सुधारने के वादे के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. लेकिन उनके आलोचक और प्रतिद्वंद्वी उन्हें देश की ताकतवर सेना की कठपुतली के रूप में देखते रहे, और उनका आरोप था कि सेना ने चुनाव प्रक्रिया में दखलअंदाजी कर उन्हें सत्ता तक पहुंचाया.
विश्लेषकों का कहना है कि इमरान ख़ान ने अपने ज़्यादातर कार्यकाल में सेना के साथ मिलकर काम किया. माना जाता है कि इमरान ख़ान बहुत हद तक तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा और उनके बाद उस समय ख़ुफिया प्रमुख रहे जनरल फ़ैज़ हमीद पर निर्भर थे. इमरान इन दोनों ही अधिकारियों को क़रीबी सहयोगी मानते थे.
इमरान ख़ान के कार्यकाल को चार साल भी नहीं हुए थे कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उन्हें संसद में अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सत्ता से बेदख़ल कर दिया और वो पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इस तरह से पद से हटाए जाने वाले प्रधानमंत्री बने. रिपोर्ट्स में ये दावा किया जाता रहा है कि उनके सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ संबंध खराब हो गए थे. ये आम धारणा है कि परमाणु सशस्त्र पाकिस्तान में सेना ही पर्दे के पीछे से सत्ता संभालती है.
जब अलीमा से ये पूछा जाता है कि उनके भाई ने अपने कार्यकाल के दौरान संसद को मज़बूत और सेना के प्रभाव को कमज़ोर क्यों नहीं किया तो वो खीझते हुए कहती हैं, "वो सिर्फ तीन-चार साल में सिस्टम को कैसे सुधार सकते थे? और उनके कार्यकाल का अधिकतर समय कोविड-19 से ही निपटने में चला गया. वो अपनी पूरी क्षमता से हालात सुधारने की कोशिश कर रहे थे."
आज इमरान ख़ान पर भ्रष्टाचार से लेकर आतंकवाद तक के दो सौ से ज़्यादा मामले चल रहे हैं. इनमें कई केस उनकी गिरफ़्तारी के बाद हुए हिंसक प्रदर्शनों से जुड़े हैं.
उनकी बहन अलीमा ख़ान पर भी मुक़दमे हैं, जिनमें आतंकवाद तक के आरोप शामिल हैं.
अलीमा कहती हैं, "पिछले दो साल से हम जेल और अदालत के चक्कर ही तो काट रहे हैं इसलिए ही तो मैं इमरान ख़ान के संदेश लोगों तक ला रही हूं. मुझे लगता है कि उनके संदेश ही सरकार के लिए समस्या बन गए हैं."
जब वो ये बात बोल ही रही होती हैं तो एक पुलिसकर्मी उन्हें अदालत का समन थमा देता है. वो पुलिसकर्मी से पूछती हैं, "मैंने क्या किया." इस पर कोई जवाब नहीं मिलता.
महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता के बीच जब इमरान ख़ान अपनी लोकप्रियता खो रहे थे तो उनके सत्ता से बाहर होने ने उन्हें एक अलग तरह की लोकप्रियता दी.
जिस दिन इमरान ख़ान सत्ता से बाहर हुए उस दिन हज़ारों लोग सड़क पर उतर आए. मई 2023 में उनकी गिरफ़्तारी के बाद पाकिस्तान में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. नौ मई को प्रदर्शनकारियों ने सेना की छावनियों और सैन्य प्रतिष्ठानों में घुसकर तोड़फोड़ की.
इमरान ख़ान और उनकी बहन ने इन आरोपों को उन्हें सत्ता से बाहर रखने का षड्यंत्र करार दिया है. वहीं, सरकार का कहना है कि ये प्रक्रिया जवाबदेही तय करने के लिए है.
पाकिस्तान के गृह मंत्री तलाल चौधरी का कहना है, "नौ मई की घटना आपके कैमरे के सामने हुईं. किसने किया? पीटीआई ने किया. किसने इसकी साजिश रची? उन्होंने रची. किसने इसका नेतृत्व किया? उन्होंने किया. और अब वो इनकार करते हैं."
चौधरी ने कहा, "उन्हें अपने गलत काम की सजा मिलेगी. हम बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन लोगों की समस्याओं पर बातचीत करेंगे न कि उनकी (इमरान) दिक्कतों पर."
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अलीमा ख़ान अडियाला जेल के बाहर अपने भाई के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ रही हैं, जबकि इमरान ख़ान की पार्टी के बाकी सदस्य अपनी लड़ाई चुपचाप लड़ रहे हैं.
पंजाब के गुजरांवाला शहर की नजमा उन नीसा अपने 36 साल के बेटे क़ासिम के निधन का शोक मना रही हैं. क़ासिम इमरान ख़ान के कट्टर समर्थक थे. नौ मई के प्रदर्शनों के बाद उन्हें गिरफ़्तार किया गया था. ढाई साल बाद जेल में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई.
वो कहती हैं, "परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाने वाले वो इकलौते शख़्स थे. अब हम क्या करेंगे?"
बेटे को खोने के बाद भी उनका इमरान ख़ान पर भरोसा कम नहीं हुआ है.
वो कहती हैं, "मेरा बेटा कहा करता था कि वो ख़ान के लिए जान दे देगा. उसने जान दे दी भी. वो हमेशा कहा करता था कि वो रिहा होने के बाद बनी गाला (ख़ान का आवास) जाएगा."
नजमा कहती हैं कि जेल में बंद लोगों को 'राजनीतिक कैदी' माना जाना चाहिए.
अपने बेटे की तस्वीर वाले पोस्टर को देखते हुए वो कहती हैं, "किसी और मां को अपने बेटे के लिए वैसा इंतज़ार न करना पड़े, जैसा मैंने किया."
राजनीतिक विश्लेषक आमिर ज़िया मानते हैं कि इमरान ख़ान के समर्थक अब इसकी क़ीमत चुका रहे हैं.
वो कहते हैं, "उनके लिए हर चीज़ पहले से ज़्यादा मुश्किल बना दी गई है. अब उन पर ज़्यादा नियंत्रण है, और अगर वो कोई रैली करें या इमरान ख़ान के समर्थन में कुछ कहें, तो उन्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ता है."
उन्होंने कहा, "अगर कोई खुलकर इमरान ख़ान का समर्थन करता है, तो उस पर असली दबाव डाला जाता है."
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Hussain Ali/Anadolu via Getty Images कई राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इमरान ख़ान की पार्टी अब कमज़ोर पड़ गई है. उनके कई सहयोगियों को या तो खामोश कर दिया गया है या किनारे कर दिया गया है.
हाल ही में अलीमा ख़ान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के मुख्यमंत्री के बीच मतभेद हुआ था. यह वही प्रांत है जो अभी भी पीटीआई के नियंत्रण में है. इस मतभेद के बाद मुख्यमंत्री को पद से हटा दिया गया.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक फ़हद हुसैन कहते हैं, "यह घटना दिखाती है कि पार्टी के भीतर अलीमा ख़ान का असर बढ़ रहा है. यही वह पार्टी है जो कभी वंशवादी राजनीति को ख़ारिज करने पर गर्व करती थी."
इस बीच, पाकिस्तान की सेना और गठबंधन सरकार ने फिर से अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है, ख़ासकर मई में हुए भारत-पाकिस्तान के संघर्ष के बाद और अमेरिका जैसे देशों के साथ बेहतर होते रिश्तों की वजह से.
राजनीतिक विश्लेषक आमिर ज़िया मानते हैं कि इमरान ख़ान की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उनकी पार्टी आम लोगों की हमदर्दी को राजनीतिक ताक़त में नहीं बदल पाई है.
वो कहते हैं, "आम पाकिस्तानी, जैसे दुकानदार या टैक्सी ड्राइवर, ये मानते हैं कि सिस्टम इमरान ख़ान के साथ नाइंसाफ़ी कर रहा है."
इमरान ख़ान पर लगे आरोपों की लंबी लिस्ट के बावजूद ज़िया कहते हैं, "इनमें से कोई भी आरोप लोगों को भरोसेमंद नहीं लगता. जनता इन्हें सच नहीं मानती."
ज़िया का कहना है कि भारत के साथ हालिया तनाव के बाद भले ही सेना ने जनता का कुछ भरोसा दोबारा हासिल किया हो, लेकिन "इसका मतलब ये नहीं कि इमरान ख़ान ने अपना भरोसा खो दिया है. जब भी कोई बाहरी ख़तरा आता है, लोग सेना के साथ खड़े हो जाते हैं. लेकिन अंदरूनी राजनीति में ज़्यादा कुछ नहीं बदलता. इमरान ख़ान अब भी जनता के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं."
हालांकि, गृह मंत्री तलाल चौधरी इससे सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि सरकार ने अच्छा प्रदर्शन किया है और अर्थव्यवस्था को संभाला है, इसी वजह से इमरान ख़ान का समर्थन घटा है.
वो कहते हैं, "लोग नतीजे चाहते हैं, और हमने उनकी ज़िंदगी बेहतर की है. अब इमरान ख़ान के लिए कोई जगह नहीं बची."
इमरान ख़ान का कहना है कि वो बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन गठबंधन सरकार से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के असली सत्ता केंद्रों से.
उनकी बहन अलीमा ख़ान का दावा है कि सत्ता प्रतिष्ठान ने इमरान ख़ान को देश छोड़ने या चुपचाप राजनीति से अलग हो जाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.
अलीमा कहती हैं, "वो इमरान ख़ान हैं. वो न तो ख़ामोश रह सकते हैं और न ही राजनीति से दूर रह सकते हैं. वो ऐसे नहीं हैं."
पाकिस्तानी सेना किसी भी तरह की भूमिका से इनकार करती है. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने गुप्त बातचीत की सभी रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया. उन्होंने कहा, "हमारा रुख़ हमेशा साफ़ रहा है. आपस में बात करना राजनेताओं का काम है. पाकिस्तान की सेना को राजनीति में नहीं घसीटना चाहिए."
इमरान ख़ान और सेना के बीच टकराव उनके ही कार्यकाल में शुरू हुआ था. पहले तब, जब उन्होंने आईएसआई प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को हटा दिया था, और बाद में जब उन्होंने उसी एजेंसी के दूसरे अधिकारी जनरल फ़ैज़ हमीद का तबादला करने से मना कर दिया.
अब हालात पलट चुके हैं. इमरान ख़ान ने जिन जनरल आसिम मुनीर को हटाया था, वही अब सेना प्रमुख हैं और भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है. जैसे-जैसे उनका प्रभाव सेना में बढ़ा, वैसे-वैसे इमरान ख़ान की राजनीतिक स्थिति कमज़ोर होती गई.
अडियाला जेल के बाहर अलीमा ख़ान को एक बार फिर अपने भाई इमरान ख़ान से मिलने की अनुमति नहीं मिलती. वो अब उस राजधानी की ओर लौटती हैं, जिस पर कभी उनके भाई का शासन था, लेकिन अब वहां तक पहुंचने का रास्ता हर दिन थोड़ा और लंबा होता जा रहा है.
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इमरान ख़ान की चार बहनों में से अलीमा ख़ान सबसे ज़्यादा सक्रिय और सार्वजनिक रूप से दिखने वाली सदस्य हैं.
वो एक कारोबारी हैं और उन्होंने एक सफल कपड़ा निर्यात कंपनी की सह-स्थापना की थी. अलीमा शौकत ख़ानम हॉस्पिटल और नमल यूनिवर्सिटी के बोर्ड में भी रहीं, जो दोनों संस्थान इमरान ख़ान की तरफ़ से बनाए गए गैर-लाभकारी संस्थाएं हैं.
शौकत ख़ानम हॉस्पिटल में कैंसर के मरीज़ों को मुफ़्त या बहुत कम लागत पर इलाज की सुविधा दी जाती है, जबकि नमल यूनिवर्सिटी ग्रामीण इलाकों के छात्रों को हायर एजुकेशन का मौका देती है. अस्पताल के शुरुआती सालों में अलीमा ने फंड जुटाने और उसको चलाने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने शौकत ख़ानम मेमोरियल ट्रस्ट की मार्केटिंग डायरेक्टर के तौर पर भी काम किया.
अलीमा की शादी रिटायर्ड एयरफ़ोर्स अधिकारी सुहैल आमिर ख़ान से हुई है और उनके दो बेटे हैं, जो अब उनके व्यवसाय में सहयोग करते हैं. अपने बेबाक स्वभाव और मज़बूत विचारों के लिए जानी जाने वाली अलीमा अक्सर पीटीआई के विरोध प्रदर्शनों, रैलियों और सामाजिक अभियानों में नज़र आती हैं. अपने भाई के राजनीतिक और सामाजिक कामों में उनकी सक्रिय भागीदारी की सराहना भी होती है और आलोचना भी. दुबई में एक अघोषित संपत्ति को लेकर उन्हें जांच का सामना भी करना पड़ा है.
इमरान ख़ान की पत्नियों के साथ अलीमा ख़ान के रिश्ते अक्सर सुर्खियों में रहे हैं. जेमिमा गोल्डस्मिथ से इमरान की शादी के दौरान उन्होंने एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखी, लेकिन रेहम ख़ान की उन्होंने खुलकर आलोचना की थी.
रेहम का दावा था कि अलीमा ने उन्हें ग़ुस्से में कई मैसेज भेजे थे. वहीं, इमरान की तीसरी और मौजूदा पत्नी बुशरा बीबी से उनके रिश्ते सामान्य और अच्छे माने जाते हैं. इसके बावजूद, अपने भाई के निजी और राजनीतिक जीवन पर अलीमा के प्रभाव को लेकर चर्चाएं हमेशा बनी रही हैं.
इमरान ख़ान की दूसरी बहनें रूबीना, डॉ. उज़मा और नौरीन सार्वजनिक जीवन से दूर रहती हैं.
सबसे बड़ी बहन रूबीना ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की है और संयुक्त राष्ट्र में काम करने के बाद अब पाकिस्तान में रह रही हैं.
डॉ. उज़मा पेशे से डॉक्टर हैं और राजनीति से दूरी बनाए रखती हैं.
नौरीन, जिनकी शादी इमरान के कज़िन हफ़ीज़ुल्लाह नियाज़ी से हुई है, लंबे समय तक लाहौर के ज़मान पार्क वाले पारिवारिक घर की देखभाल करती रही हैं.
इमरान और उनकी बहनें एक पश्तून परिवार में पली-बढ़ीं. उनके पिता इंजीनियर इकरामुल्लाह ख़ान नियाज़ी मियांवाली के नियाज़ी कबीले से थे, जबकि मां शौक़त ख़ानम जालंधर के बुर्की परिवार से थीं, वही परिवार जिसमें क्रिकेटर माजिद ख़ान और जावेद बुर्की शामिल हैं.
लाहौर के ज़मान पार्क स्थित इसी बड़े घर में इमरान ने क्रिकेट सीखी और वो आज़ाद सोच विकसित की जिसने आगे चलकर उनके पूरे करियर को दिशा दी.
पर्दे के पीछे सक्रिय रही हैं अलीमाहालांकि अलीमा ख़ान इमरान ख़ान के क्रिकेट और राजनीतिक जीवन में हमेशा सक्रिय रहीं, लेकिन इमरान ने सार्वजनिक रूप से हमेशा एक दूरी बनाए रखी.
प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण के समय और बाद में बुशरा बीबी से शादी के दौरान अपनी बहनों को शामिल न करना, इस बात का संकेत माना गया कि अब उनके प्रभाव में कमी आ गई है.
2018 से 2022 के बीच प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान ख़ान ने अलीमा को कोई आधिकारिक ज़िम्मेदारी नहीं दी, लेकिन वो पर्दे के पीछे सक्रिय रहीं. उन्होंने शौक़त ख़ानम हॉस्पिटल ट्रस्ट के लिए धन जुटाने और बोर्ड से जुड़े अपने काम को जारी रखा. वो पार्टी के कार्यक्रमों, चैरिटी डिनर और विरोध प्रदर्शनों में भी नज़र आती रहीं.
हाल की एक घटना ने दिखाया कि पाकिस्तान की बंटी हुई राजनीति में अलीमा ख़ान कितनी चर्चा में बनी रहती हैं. अडियाला जेल के बाहर प्रेस वार्ता के दौरान उन पर अंडा फेंके जाने का एक वीडियो वायरल हुआ.
बाद में अलीमा ने कहा, "हम ऐसे हमलों से नहीं डरते. हमें पहले से अंदाज़ा था कि ऐसा कुछ हो सकता है."
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- ट्रंप क्या इमरान ख़ान को रिहा करा सकते हैं, अमेरिकी चुनाव का पाकिस्तान पर क्या होगा असर?
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