शेयर मार्केट में कॉरपोरेट अर्निंग सीज़न लगभग आधा हो चुका है और अगर कुछ कंपनियों को छोड़ दें तो कमाई कुछ खास नहीं रही है. आईटी सेक्टर में कमज़ोर कमाई से निराशा छाई है. कमज़ोर कॉर्पोरेट अर्निंग्स और एफआईआई की सेलिंग बाज़ार की स्थिति संभलने नहीं दे रही है. अब लग रहा है कि निवेशकों के लिए शेयर मार्केट से पैसा कमाना मुश्किल हो रहा है.
अब हम कमाई के मौसम के ठीक आधे पड़ाव पर हैं. बीएसई 500 कंपनियों में से लगभग 50% ने जून तिमाही के अपने नतीजे घोषित कर दिए हैं. हालांकि अब तक कमाई का रुझान निराशाजनक रहा है. इस तिमाही में किसी ने भी ज़बरदस्त नतीजों की उम्मीद नहीं की थी.
वित्तवर्ष 2026 की पहली तिमाही में रिपोर्ट किए गए आंकड़े काफी हद तक निराशाजनक रहे हैं. पिछले साल आधार तिमाही में चुनाव संबंधी व्यवधानों को देखते हुए कई लोगों ने उम्मीद की थी कि कम आधार प्रभाव से इस तिमाही में विकास को बढ़ावा मिलेगा. इसके बजाय हम देख रहे हैं कि कई कंपनियां मामूली ग्रोथ दर्ज करने के लिए भी संघर्ष कर रही हैं. इसका मतलब है कि मौजूदा नरमी सिर्फ़ एक क्षणिक झटका नहीं है तो क्या हम अर्थव्यवस्था के लिए एक गहरी विकास चुनौती का सामना कर रहे हैं? अब तक आय की घोषणा करने वाली कुछ प्रमुख कंपनियों के मैनेजमेंट के गाइडेंस से मुख्य निष्कर्ष निकालना उपयोगी होगा.
बैंकिंग सेक्टर में क्या हो रहा है
बैंकिंग सेक्टर देखें तो बात स्लो क्रेडिट ग्रोथ की ही नहीं है, बल्कि ओवर ऑल सेंटीमेंट्स में सुधार के बावजूद इस तिमाही में भी इस रुझान में कोई राहत नहीं मिली. पिछले तीन महीनों में क्रेडिट ग्रोथ और भी गिर गई है। वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में मध्य-स्तरों के आसपास मंडराते हुए पिछली तीन तिमाहियों से कम तर पर रहने के बाद इस तिमाही में क्रेडिट ग्रोथ तेजी से घटकर सिंगल डिजिट में आ गई है. हालांकि बड़ा नकारात्मक आश्चर्य अनसिक्योर्ड सेक्टर के बारे में टिप्पणियों से आया. विशेष रूप से प्रमुख एनबीएफसी और बैंकों के प्रबंधन से ऐसे गाइडेंस आए.
माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में निरंतर तनाव और सामान्य ऋण मंदी के साथ तेज आर्थिक सुधार की संभावनाएं धुंधली दिखती हैं. बैंकों के लिए नेट इंटेरेस्ट मार्जिन (एनआईएम) पर दबाव इससे बुरे समय पर नहीं आ सकता था. लगातार ब्याज दरों में कटौती के साथ उधार दरों में गिरावट आई है, जबकि जमा दरें पीछे रह गई हैं, जिससे अल्पावधि में एनआईएम कम हो रहा है.
आईटी में लगातार कमज़ोरी का कारणआईटी सेक्टर की कंपनियों की कमाई भी उतनी ही निराशाजनक है. आईटी कंपनियों ने राजस्व और प्रॉफिटिबिलिटी दोनों में क्रमिक गिरावट दर्ज की. प्रमुख कंपनियों के स्लो गाइडेंस के साथ हम एक और वर्ष में डॉलर में कम सिंगल डिजिट रेवेन्यू ग्रोथ की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन यह कहानी का केवल एक हिस्सा है.
राजस्व में थोड़ी ग्रोथ हो सकती है, लेकिन असली दर्द एआई को बढ़ावा देने से उत्पादकता में वृद्धि के कारण होने वाली नौकरियों के नुकसान में है. यदि टीसीएस की हालिया 2% छंटनी की घोषणा इंडस्ट्री में अन्य कंपनियों द्वारा भी की जाती है तो व्यापक आर्थिक गतिविधियों पर दूसरे क्रम के प्रभाव अशुभ हो सकते हैं. ऐसे समय में जब एमएसएमई पहले से ही तनाव में हैं, मिड टर्म में ग्रोथ रेट कमजोर होता दिख रहा है.
अब हम कमाई के मौसम के ठीक आधे पड़ाव पर हैं. बीएसई 500 कंपनियों में से लगभग 50% ने जून तिमाही के अपने नतीजे घोषित कर दिए हैं. हालांकि अब तक कमाई का रुझान निराशाजनक रहा है. इस तिमाही में किसी ने भी ज़बरदस्त नतीजों की उम्मीद नहीं की थी.
वित्तवर्ष 2026 की पहली तिमाही में रिपोर्ट किए गए आंकड़े काफी हद तक निराशाजनक रहे हैं. पिछले साल आधार तिमाही में चुनाव संबंधी व्यवधानों को देखते हुए कई लोगों ने उम्मीद की थी कि कम आधार प्रभाव से इस तिमाही में विकास को बढ़ावा मिलेगा. इसके बजाय हम देख रहे हैं कि कई कंपनियां मामूली ग्रोथ दर्ज करने के लिए भी संघर्ष कर रही हैं. इसका मतलब है कि मौजूदा नरमी सिर्फ़ एक क्षणिक झटका नहीं है तो क्या हम अर्थव्यवस्था के लिए एक गहरी विकास चुनौती का सामना कर रहे हैं? अब तक आय की घोषणा करने वाली कुछ प्रमुख कंपनियों के मैनेजमेंट के गाइडेंस से मुख्य निष्कर्ष निकालना उपयोगी होगा.
बैंकिंग सेक्टर में क्या हो रहा है
बैंकिंग सेक्टर देखें तो बात स्लो क्रेडिट ग्रोथ की ही नहीं है, बल्कि ओवर ऑल सेंटीमेंट्स में सुधार के बावजूद इस तिमाही में भी इस रुझान में कोई राहत नहीं मिली. पिछले तीन महीनों में क्रेडिट ग्रोथ और भी गिर गई है। वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में मध्य-स्तरों के आसपास मंडराते हुए पिछली तीन तिमाहियों से कम तर पर रहने के बाद इस तिमाही में क्रेडिट ग्रोथ तेजी से घटकर सिंगल डिजिट में आ गई है. हालांकि बड़ा नकारात्मक आश्चर्य अनसिक्योर्ड सेक्टर के बारे में टिप्पणियों से आया. विशेष रूप से प्रमुख एनबीएफसी और बैंकों के प्रबंधन से ऐसे गाइडेंस आए.
माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में निरंतर तनाव और सामान्य ऋण मंदी के साथ तेज आर्थिक सुधार की संभावनाएं धुंधली दिखती हैं. बैंकों के लिए नेट इंटेरेस्ट मार्जिन (एनआईएम) पर दबाव इससे बुरे समय पर नहीं आ सकता था. लगातार ब्याज दरों में कटौती के साथ उधार दरों में गिरावट आई है, जबकि जमा दरें पीछे रह गई हैं, जिससे अल्पावधि में एनआईएम कम हो रहा है.
आईटी में लगातार कमज़ोरी का कारणआईटी सेक्टर की कंपनियों की कमाई भी उतनी ही निराशाजनक है. आईटी कंपनियों ने राजस्व और प्रॉफिटिबिलिटी दोनों में क्रमिक गिरावट दर्ज की. प्रमुख कंपनियों के स्लो गाइडेंस के साथ हम एक और वर्ष में डॉलर में कम सिंगल डिजिट रेवेन्यू ग्रोथ की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन यह कहानी का केवल एक हिस्सा है.
राजस्व में थोड़ी ग्रोथ हो सकती है, लेकिन असली दर्द एआई को बढ़ावा देने से उत्पादकता में वृद्धि के कारण होने वाली नौकरियों के नुकसान में है. यदि टीसीएस की हालिया 2% छंटनी की घोषणा इंडस्ट्री में अन्य कंपनियों द्वारा भी की जाती है तो व्यापक आर्थिक गतिविधियों पर दूसरे क्रम के प्रभाव अशुभ हो सकते हैं. ऐसे समय में जब एमएसएमई पहले से ही तनाव में हैं, मिड टर्म में ग्रोथ रेट कमजोर होता दिख रहा है.
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