भारतीय उपमहाद्वीप में भाई-दूज एक पारंपरिक त्योहार है, जो भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है। यह पर्व दीपावली के बाद मनाया जाता है और बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर उपहार प्राप्त करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं।
इस अवसर पर मुगलों के भाई-बहनों, दारा शिकोह-जहांआरा और औरंगजेब-रोशनआरा के रिश्तों पर एक नज़र डालते हैं। दारा शिकोह को एक धार्मिक व्यक्ति माना जाता था, जबकि औरंगजेब को एक कठोर शासक के रूप में जाना जाता है।
दारा और औरंगजेब के बीच रिश्ते की जटिलता
मुगल काल में पारिवारिक संघर्षों ने कई बार सत्ता की दिशा बदल दी। जहांआरा ने अपने भाई दारा का समर्थन किया, जबकि रोशनआरा ने औरंगजेब का साथ दिया। इन निर्णयों का ऐतिहासिक परिणाम पर गहरा प्रभाव पड़ा। जहांआरा ने दारा को अपने पिता शाहजहां का उत्तराधिकारी मानते हुए उसके पक्ष में राजनीतिक समर्थन जुटाया।
रोशनआरा ने औरंगजेब को शाहजहां की साज़िशों से अवगत कराया, जिससे वह सत्ता की दौड़ में सफल हो सका। 1657-58 के उत्तराधिकार संघर्ष में जहांआरा दारा के साथ रहीं, लेकिन बाद में औरंगजेब के सत्ता में आने पर वह हाशिए पर चली गईं।
भाई-दूज का महत्व और पारिवारिक एकता
भाई-दूज पारिवारिक एकता का प्रतीक है। हिंदू संस्कृति में बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह त्योहार पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का एक अवसर है।
इतिहास में भाई-बहन के रिश्ते ने कई महत्वपूर्ण निर्णयों में भूमिका निभाई है। मुगलों के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि बहनों की सलाह और समर्थन कभी-कभी युद्ध और राजनीतिक गठजोड़ का कारण बन सकते हैं। दारा और औरंगजेब की कहानी इस बात का प्रमाण है कि व्यक्तिगत वफादारी और राजनीति का मेल अक्सर बड़े परिणाम लाता है।
भाई-दूज के रीति-रिवाज और आधुनिक अर्थ
उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भाई-दूज के रीति-रिवाज भिन्न हैं। नेपाल में इसे भाई-टीका कहा जाता है, जबकि कुछ समुदायों में बहनें अपने भाइयों के लिए विशेष व्यंजन बनाती हैं। आधुनिक समय में यह त्योहार सामाजिक मीडिया और उपहारों का हिस्सा बन गया है, लेकिन इसका मूल संदेश वही है।
भाई-दूज का असली अर्थ यह है कि रिश्ते केवल व्यक्तिगत आनंद के लिए नहीं होते, बल्कि वे सामाजिक जिम्मेदारी और एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य का बोध भी कराते हैं।
भाई-दूज से सीख: निष्ठा और विवेक
भाई-बहन के रिश्ते में निष्ठा और प्रेम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन विवेक और सार्वजनिक जिम्मेदारी भी आवश्यक हैं। जहांआरा और रोशनआरा के उदाहरण बताते हैं कि बहन की नीति और चुनाव कभी-कभी परिवार और राष्ट्र के लिए निर्णायक हो सकते हैं।
भाई-दूज का पर्व हमें याद दिलाता है कि मानव संबंधों में जटिलता और गहराई होती है। ये केवल रस्में नहीं, बल्कि जीवन के बड़े निर्णयों पर असर डालने वाली नीतियां भी हो सकती हैं।
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