अमृतसर, पंजाब में स्थित स्वर्ण मंदिर, जिसे हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसकी स्थापना 1574 में चौथे सिख गुरु, रामदास जी द्वारा की गई थी। यह मंदिर न केवल सिखों के लिए, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए भी एक श्रद्धा का केंद्र है। यहाँ लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं। इस मंदिर की विशेषता इसकी सोने की परत है, जो इसे अद्वितीय बनाती है।
हरमंदिर साहिब का इतिहास
हरमंदिर साहिब का डिज़ाइन पाँचवे सिख गुरु, अर्जुन द्वारा किया गया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में सिख धर्म का समृद्ध इतिहास दर्शाया गया है। यह परिसर अकाल तख़्त के निकट स्थित है और इसे सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। स्वर्ण मंदिर का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि पुरुष और महिलाएं समान रूप से भगवान की आराधना कर सकें।
गुरु राम दास और अमृत टाँकी
गुरु अमर दास ने गुरु राम दास को एक अमृत टाँकी बनाने का निर्देश दिया, ताकि सिख धर्म के अनुयायी भी भगवान की पूजा कर सकें। गुरु राम दास ने अपने सभी शिष्यों को इस कार्य में शामिल किया। उनका मानना था कि यह अमृत टाँकी ही भगवान का घर है। जिस झोपड़ी में गुरु जी रहते थे, वह आज गुरु महल के नाम से जानी जाती है।
अमृतसर का नामकरण
1578 में गुरु राम दास ने एक और टाँकी की खुदाई का कार्य आरंभ किया, जिसे बाद में अमृतसर के नाम से जाना गया। इस टाँकी के नाम पर ही शहर का नाम अमृतसर पड़ा। हरमंदिर साहिब अमृतसर के केंद्र में स्थित है, और यही कारण है कि सभी सिख इसे अपने मुख्य देवस्थान के रूप में मानते हैं।
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