Bhopal , 27 अक्टूबर . India में भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं, जहां भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. क्या आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में लोग जलहरी पर चढ़कर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं? शायद नहीं. लेकिन, Madhya Pradesh में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां यह प्रथा सदियों से चली आ रही है.
Bhopal से लगभग 30 किलोमीटर दूर भोजपुर गांव की पहाड़ी पर स्थित भोजेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर को ‘पूर्व का सोमनाथ मंदिर’ कहा जाता है, क्योंकि यहां का शिवलिंग आकार और आस्था दोनों में अद्भुत है. मंदिर भले ही अधूरा है, लेकिन इसकी भव्यता किसी पूर्ण निर्माण से कम नहीं. इसकी विशाल संरचना और रहस्यमयी अधूरापन इसे देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है.
कहा जाता है कि भोजेश्वर मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में महान राजा भोज ने करवाया था. राजा भोज न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि कला, संस्कृति और स्थापत्य के भी महान संरक्षक थे. किंवदंती है कि जब राजा भोज गंभीर बीमारी से ठीक हुए, तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए दुनिया का सबसे विशाल शिवलिंग स्थापित करने का संकल्प लिया. इसी संकल्प से जन्म हुआ भोजेश्वर मंदिर का, जो आज भी उनकी श्रद्धा और वास्तुकला के प्रति समर्पण का प्रतीक है.
मंदिर का शिवलिंग 7.5 फीट ऊंचा और 18 फीट चौड़ा है. इसकी स्थापना जिस चबूतरे पर की गई है, वह इतना ऊंचा है कि पुजारी को सीढ़ी लगाकर ऊपर चढ़ना पड़ता है. यही कारण है कि यहां श्रद्धालु और पुजारी दोनों जलहरी पर चढ़कर अभिषेक करते हैं, जो अपने आप में अनोखी परंपरा है.
कहानी यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में होना था, लेकिन सूर्योदय से पहले कार्य अधूरा रह गया. सूरज की पहली किरण के साथ ही निर्माण रुक गया, और मंदिर आज तक अधूरा खड़ा है.
भोजपुर मंदिर का संबंध महाIndia काल से भी बताया जाता है. कहा जाता है कि माता कुंती ने पांडवों के अज्ञातवास के दौरान यहां भगवान शिव का जलाभिषेक किया था. यही कारण है कि यह स्थल भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है.
हर साल मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है. महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव में देशभर से भक्त, साधु-संत और पर्यटक जुटते हैं.
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पीआईएम/एबीएम
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