अमृतसर, 26 अक्टूबर . सिख धर्म में हमेशा से सिर को ढकने की परंपरा चली आई है. चाहे महिला हो या पुरुष, गुरुद्वारे में दर्शन के लिए आए श्रद्धालुओं को सिर ढकना अनिवार्य है. इसे गुरुद्वारे में सम्मान का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अब सच्चखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने संगत से एक खास अपील की है.
उन्होंने कहा कि वे कुछ सेकंड के लिए सिर ढकने के लिए पैसे की बर्बादी न करें और उन पैसों से गरीबों की मदद करें.
सच्चखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने श्रद्धालुओं के साथ पटका (सिर ढकने का कपड़ा) के नाम पर हो रही लूट का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि दुकानदार पुराने कपड़ों का प्रयोग करते हैं और संगत बेकार में उन पर पैसा खर्च करती है.
उन्होंने से खास बातचीत में कहा, “आजकल लूट की जा रही है और गुरु घर के प्रति बेअदबी हो रही है. श्रद्धालु अक्सर बेवजह पटका खरीद लेते हैं, जिनका बाद में कोई उपयोग नहीं होता.”
उन्होंने आगे कहा, “एक मिनट के लिए माला को छूते हैं और फिर पटका को एक तरफ रख देते हैं, फिर वो किसी के काम नहीं आता.”
बता दें कि गुरुद्वारा कमेटी पहले ही मंदिरों में सिर ढकने के लिए श्रद्धालुओं के लिए पटका रखती है. गुरुद्वारों में जगह-जगह टोकरियां रखी रहती हैं, जिनमें सिर ढकने के लिए कपड़े मौजूद रहते हैं, लेकिन कुछ श्रद्धालु पवित्रता को देखते हुए नए पटके खरीदते हैं और उन्हें गुरुद्वारे में छोड़ जाते हैं. गुरुद्वारे के बाहर मौजूद ज्यादातर फेरी वाले भी श्रद्धालुओं को नए पटके खरीदने के लिए कहते हैं. लोगों के मन में भी आस्था होती है कि वे नया और स्वच्छ पटके ही खरीदें और इसी आस्था का फायदा बाजार में बैठे लोग उठाते हैं.
ज्ञानी रघुबीर सिंह ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वो बेवजह पटके में पैसे बर्बाद न करें और उन पैसों को गरीबों की मदद में लगाएं. इस प्रथा से न केवल संगत का पैसा व्यर्थ जा रहा है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की भी बर्बादी हो रही है. इसलिए संगत को चाहिए कि अपनी मेहनत की कमाई इस तरह व्यर्थ न करें, बल्कि इसे सेवा और भलाई के कार्यों में लगाएं. ये गुरु की असली और सच्ची सेवा है.
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पीएस/वीसी/एबीएम
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