सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई जब वरिष्ठ वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। यह घटना अदालत की कार्यवाही के दौरान हुई, जब एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी। हालांकि, सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप कर उन्हें काबू में ले लिया और किसी तरह की बड़ी अप्रिय स्थिति से बचाव किया गया।
अब इस मामले पर वकील राकेश किशोर का बयान सामने आया है, जिसने सबको हैरान कर दिया है। उन्होंने कहा, “मुझे किसी दैवीय शक्ति ने ऐसा करने का आदेश दिया था। मुझे अपने कदम पर कोई पछतावा नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि उनका परिवार उनके इस व्यवहार से बेहद असहज है और समझ नहीं पा रहा कि उन्होंने ऐसा कदम क्यों उठाया।
राकेश किशोर के मुताबिक, घटना के वक्त अदालत में खजुराहो के एक मंदिर में भगवान विष्णु की टूटी हुई मूर्ति की बहाली से जुड़ी याचिका पर सुनवाई चल रही थी। उसी समय उन्होंने यह कदम उठाया, जिसे अब वह ‘दैवी प्रेरणा’ बता रहे हैं।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की सख्त कार्रवाई
इस घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने कठोर रुख अपनाते हुए वकील राकेश किशोर का वकालत लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। BCI के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा द्वारा जारी आदेश में कहा गया कि, “इस तरह का आचरण न केवल न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ है, बल्कि यह अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और वकीलों की आचार संहिता का खुला उल्लंघन है।”
यह घटना सोमवार (6 अक्टूबर) को सुबह करीब 11:35 बजे घटी। 71 वर्षीय राकेश किशोर द्वारा की गई इस हरकत ने पूरे कानूनी समुदाय को स्तब्ध कर दिया है। अदालत परिसर में मौजूद अन्य वकीलों ने भी इस कृत्य की निंदा की और इसे “न्याय व्यवस्था के प्रति असम्मान” बताया।
अब किसी भी अदालत में पेश नहीं हो सकेंगे
बार काउंसिल ने साफ निर्देश दिया है कि निलंबन की अवधि के दौरान राकेश किशोर देश की किसी भी अदालत, प्राधिकरण या अधिकरण में पेश नहीं हो सकेंगे।
साथ ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
BCI का कहना है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाएगा ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ इस तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचे।
परिवार में असहमति, पर वकील का रुख अडिग
हालांकि परिवारजन इस घटना से बेहद परेशान हैं, राकेश किशोर का कहना है कि उन्हें इस कदम पर कोई अफसोस नहीं है। उन्होंने कहा, “काश मुझे जेल भेज दिया गया होता, शायद वहीं जाकर लोग मेरी बात समझते।”
उनके इस बयान ने पूरे कानूनी जगत में चर्चा का माहौल बना दिया है। कुछ विशेषज्ञ इसे मानसिक असंतुलन का परिणाम मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि न्यायपालिका के सम्मान से समझौता किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।
न्यायपालिका की गरिमा और अनुशासन के इस मामले ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। अब देखना यह होगा कि बार काउंसिल की जांच में आगे क्या निष्कर्ष निकलता है और वकील राकेश किशोर के खिलाफ क्या अंतिम कार्रवाई की जाती है।
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