के.सी. त्यागी: लंदन में कुछ समय पहले बलूच लिबरेशन फ्रंट के एक ग्रुप से मुलाकात हुई। उनसे बलूचिस्तान के जमीनी हालात जानकर आश्चर्य भी हुआ और अफसोस भी। संयुक्त राष्ट्र या किसी भी दूसरे मंच पर बलूचों के उत्पीड़न और शोषण की चर्चा नहीं हो रही है।
पहचान की मांग। इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए हमें अतीत में जाना होगा। बलूचिस्तान आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो अपने क्षेत्रफल, प्राकृतिक संसाधनों और रणनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह देश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और इसका क्षेत्र पाकिस्तान के कुल भूभाग का करीब 44% है। इसकी सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं, जिससे इसका सामरिक महत्व और बढ़ जाता है।
जिन्ना की जिद । बलूचिस्तान के शासक खान ऑफ कलात, अहमद यार खान ने 1946 में कहा था, 'हम पहले से स्वतंत्र हैं और स्वतंत्र रहना चाहते हैं। हम पाकिस्तान या भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहते।' दूसरी ओर, मोहम्मद अली जिन्ना बलूचिस्तान के रणनीतिक महत्व को समझते थे और इसे पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे।
पाकिस्तान का धोखा। 1947 में सरदार कलात ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र प्रांत घोषित कर जिन्ना को हैरान कर दिया। लेकिन 27 मार्च 1948 को जनता की मर्जी के खिलाफ पाकिस्तान ने इसे जबरदस्ती अपने में मिला लिया। तब कलात खान ने कहा था, 'मैंने दबाव में आकर विलय किया है।' इसने बलूचों की स्वतंत्रता की भावना को और मजबूत किया। पाकिस्तान ने कहा था कि रक्षा, विदेश और संचार को छोड़कर तमाम अधिकार राज्य के पास रहेंगे, लेकिन यह वादा केवल कागज पर ही रह गया।
विद्रोह की शुरुआत। पाकिस्तान में विलय के बाद से ही बलूचों का विरोध शुरू हो गया। 1948, 1958, 1960 में आंदोलन चला। 1973-1977 के बीच एक बड़ा विद्रोह हुआ। फिर 2000 के दशक की शुरुआत से जारी संघर्ष अब भी चल रहा है। आज के विद्रोही अक्सर सरकारी इमारतें, गैस पाइपलाइन और अन्य सरकारी सुविधाओं को निशाना बनाते हैं। कभी-कभी प्रांत में रहने वाली गैर बलूची जनता भी प्रभावित होती है।
महाशक्तियों की नजर । बलूचिस्तान राजनीतिक हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित पाकिस्तानी प्रांतों में से एक है। केवल राजधानी क्वेटा में ही पिछले साल की तुलना में आतंकी हमले 39% बढ़े हैं। भले ही पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच आंदोलन को समय-समय पर कुचल देती है, लेकिन यह फिर उभर आता है। इस प्रांत के खनिज संसाधनों का दोहन जारी है। चीन के बाद अमेरिका की भी इस प्रांत पर नजर है।
चीनी चुनौती। बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति और संसाधन अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। आने वाले 30-40 वर्षों में चीन के प्राकृतिक संसाधन और अरब जगत का तेल कम होने की संभावना है। तब अमेरिका को मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा। हालांकि, बलूचिस्तान में चीन के हस्तक्षेप के कारण अमेरिका के लिए प्रभावशाली स्थिति बनाना मुश्किल हो गया है। ग्वादर बंदरगाह और बलूचिस्तान की तटीय रेखा पर चीन का नियंत्रण अमेरिका के लिए चिंता का मुख्य कारण है।
(लेखक पूर्व सांसद हैं।)
पहचान की मांग। इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए हमें अतीत में जाना होगा। बलूचिस्तान आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो अपने क्षेत्रफल, प्राकृतिक संसाधनों और रणनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह देश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और इसका क्षेत्र पाकिस्तान के कुल भूभाग का करीब 44% है। इसकी सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं, जिससे इसका सामरिक महत्व और बढ़ जाता है।
जिन्ना की जिद । बलूचिस्तान के शासक खान ऑफ कलात, अहमद यार खान ने 1946 में कहा था, 'हम पहले से स्वतंत्र हैं और स्वतंत्र रहना चाहते हैं। हम पाकिस्तान या भारत का हिस्सा नहीं बनना चाहते।' दूसरी ओर, मोहम्मद अली जिन्ना बलूचिस्तान के रणनीतिक महत्व को समझते थे और इसे पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे।
पाकिस्तान का धोखा। 1947 में सरदार कलात ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र प्रांत घोषित कर जिन्ना को हैरान कर दिया। लेकिन 27 मार्च 1948 को जनता की मर्जी के खिलाफ पाकिस्तान ने इसे जबरदस्ती अपने में मिला लिया। तब कलात खान ने कहा था, 'मैंने दबाव में आकर विलय किया है।' इसने बलूचों की स्वतंत्रता की भावना को और मजबूत किया। पाकिस्तान ने कहा था कि रक्षा, विदेश और संचार को छोड़कर तमाम अधिकार राज्य के पास रहेंगे, लेकिन यह वादा केवल कागज पर ही रह गया।
विद्रोह की शुरुआत। पाकिस्तान में विलय के बाद से ही बलूचों का विरोध शुरू हो गया। 1948, 1958, 1960 में आंदोलन चला। 1973-1977 के बीच एक बड़ा विद्रोह हुआ। फिर 2000 के दशक की शुरुआत से जारी संघर्ष अब भी चल रहा है। आज के विद्रोही अक्सर सरकारी इमारतें, गैस पाइपलाइन और अन्य सरकारी सुविधाओं को निशाना बनाते हैं। कभी-कभी प्रांत में रहने वाली गैर बलूची जनता भी प्रभावित होती है।
महाशक्तियों की नजर । बलूचिस्तान राजनीतिक हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित पाकिस्तानी प्रांतों में से एक है। केवल राजधानी क्वेटा में ही पिछले साल की तुलना में आतंकी हमले 39% बढ़े हैं। भले ही पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच आंदोलन को समय-समय पर कुचल देती है, लेकिन यह फिर उभर आता है। इस प्रांत के खनिज संसाधनों का दोहन जारी है। चीन के बाद अमेरिका की भी इस प्रांत पर नजर है।
चीनी चुनौती। बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति और संसाधन अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। आने वाले 30-40 वर्षों में चीन के प्राकृतिक संसाधन और अरब जगत का तेल कम होने की संभावना है। तब अमेरिका को मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा। हालांकि, बलूचिस्तान में चीन के हस्तक्षेप के कारण अमेरिका के लिए प्रभावशाली स्थिति बनाना मुश्किल हो गया है। ग्वादर बंदरगाह और बलूचिस्तान की तटीय रेखा पर चीन का नियंत्रण अमेरिका के लिए चिंता का मुख्य कारण है।
(लेखक पूर्व सांसद हैं।)
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