नई दिल्ली। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी AI की दुनिया में अब तक हुए विविध अनुसंधान और विकसित विभिन्न 'स्मार्ट टूल्स' का समग्र मूल्यांकन करने के बाद कोई यदि यह कहे कि बीते चालीस सालों में अधिक कुछ नहीं हुआ है, तब? इंग्लैंड की प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के दिग्गज एआई रिसर्चर और चर्चित पुस्तक 'मोरल कोड्स : डिजाइनिंग आल्टरनेटिव्स टू एआई' के लेखक प्रो. एलन ब्लैकवेल ने NBT के एआई संवाददाता आर्यमित्र पटैरिया को दिये विशेष साक्षात्कार में जीपीटी, एआई और एथिक्स पर गंभीर तथ्य सामने रखे।
AI में जो कुछ हो रहा है, वह पहले से ही है
प्रोफेसर ब्लैकवेल कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ख्यातिलब्ध कंप्यूटर साइंस विभाग "द कंप्यूटर लैबोरेटरी" के प्रमुख एआई विज्ञानी हैं। गत 42 वर्षों से एआई में रिसर्च कर रहे प्रोफेसर एलन ब्लैकवेल का कहना है कि एआई जगत में आज जो प्रणालियां प्रचलन में आ रही हैं, विशेषकर बाजार में, उनकी अवधारणाएं चार दशक से भी अधिक समय से विद्यमान हैं। उन्हें आज कुछ परिष्कृत कर पब्लिक टूल्स के रूप में भुनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीपीटी यानी जेनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर इसका एक उदाहरण मात्र है।
लार्ज लैंग्वेज मॉडल का अब जीपीटी में हो रहा इस्तेमाल
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा, जीपीटी का आधार ‘जेनरेटिंग एंड रीवर्डिंग टेक्स्ट’ युक्ति है। ओपन एआई के ‘चैट जीपीटी’ से लेकर गूगल के ‘जैमिनी’ तक, ऐसे अनेक कंज्यूमर प्रोडक्ट्स बनाने में इसे अपनाया जा रहा है। किंतु यह एआई की कोई नई विधा नहीं है। यह दशकों पुरानी आधारभूत प्रणाली है। इसी पर ‘लार्ज लैंग्वेज मॉडल’ (एलएलएम) आधारित है, जिसका प्रकारांतर विविध उपयोग होता रहा है। अब जीपीटी में हो रहा है।
जीपीटी पर सर्च का नतीजा 100 फीसदी सटीक नहीं
एआई के वर्तमान और भविष्य को लेकर इस विशेष विमर्श में वरिष्ठ एआई विज्ञानी ने NBT से खुलकर अपनी बात कही। जनसाधारण को समझाने के लिए उन्होंने कहा, यदि आप जीपीटी को एआई का आधुनिक उदाहरण मान रहे हैं, तो आप भ्रमित हैं। उन्होंने कहा, ‘जेनरेटिंग एंड रीवर्डिंग टेक्स्ट’ की विधा में कुछ परिष्करण अवश्य हुआ है, ग्रामर और स्पेलिंग में अब कुछ अधिक निपुणता आई है। किंतु तब भी जीपीटी पर सर्च का परिणाम शत-प्रतिशत सटीक नहीं है। इसीलिए इसमें सोर्स से पुष्टि की आवश्यकता पड़ रही है। इसके परिणाम को परखने में भी बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता पड़ रही है। अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
AI के विकल्पों पर किया जा रहा है विचार
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा कि बाजार अपने स्थान पर है और ठोस रिसर्च अपने। केवल पैसों के पीछे भागने से तकनीकी विकास नहीं होगा। ढर्रे पर दोहन करते रहे तो उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। इससे बचने के लिए तकनीकी को निरंतर आगे बढ़ाना आवश्यक होता है। वर्ष 1983 से इस विधा में शोध कर रहे एलेन ब्लैकवेल इंटरडिसिप्लिनरी डिजाइन के प्रोफेसर होने के साथ ही 'कैम्ब्रिज ग्लोबल चैलेंजेस' के सह-संस्थापक भी हैं। वह अपनी पुस्तक 'मोरल कोड्स : डिजाइनिंग आल्टरनेटिव्स टू एआई' के लिए चर्चा में रहे हैं। प्रोफेसर ब्लैकवेल और उनकी टीम एआई के विकल्पों पर शोध कर रही है।
एआई के विकल्पों पर क्यों?
वह कहते हैं, हम कंप्यूटर को अपने लिए और अधिक उपयोगी कैसे बनाएं, जन उपयोगी केसै बनाएं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। एआई इसका एक उपाय है, किंतु एकमात्र उपाय नहीं। कंप्यूटर विज्ञान में असीम संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें मानव विकास को केंद्र में रखना होगा। हमें और अधिक रचनात्मक और अधिक संवेदनशील व पूर्ण उत्तरदाई होना होगा। अंततः तकनीकी के अंतिम उपयोगकर्ता के रूप में हमें जनसाधारण को यह प्रतिनिधित्व देना होगा कि वह अपने उपयोग और आवश्यकता के अनुरूप कंप्यूटर को निर्देश देने में सक्षम हो सके।
यह फिलॉसफी नहीं, इंजीनियरिंग है
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा कि एआई और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मूल नैतिक सिद्धांत गढ़ने होंगे। उन्होंने कहा कि 'यह फिलॉसफी नहीं है, इंजीनियरिंग है'। हमें एआई और आईटी के छात्रों को नैतिकता का विशेष पाठ नहीं पढ़ाना है, वरन उन्हें नैतिक बनाना है। नैतिकता एक स्वाभाविक तथ्य है, यह कृत्रिम नहीं हो सकता है। जब हमारी बुद्धि ही नैतिक नहीं होगी, तब हम कृत्रिम बुद्धि में कृत्रिम नैतिकता कैसे डालेंगे। उन्होंने जोर देकर यह कहा कि यदि हम एआई के प्रति सेंसिबल और जिम्मेदार दृष्टिकोण नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे हम इसके उन्नत भविष्य के लिए आवश्यक सभी महत्वपूर्ण संसाधन खोते जाएंगे। इन संसाधनों में युवा प्रतिभा भी अति महत्वपूर्ण घटक है। ब्लैकवेल ने कहा, मैं पूछता हूं कि आधारभूत अध्ययन, अध्यापन और शोध के बिना हम प्रतिभा को कैसे संजो सकते हैं?
AI में जो कुछ हो रहा है, वह पहले से ही है
प्रोफेसर ब्लैकवेल कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ख्यातिलब्ध कंप्यूटर साइंस विभाग "द कंप्यूटर लैबोरेटरी" के प्रमुख एआई विज्ञानी हैं। गत 42 वर्षों से एआई में रिसर्च कर रहे प्रोफेसर एलन ब्लैकवेल का कहना है कि एआई जगत में आज जो प्रणालियां प्रचलन में आ रही हैं, विशेषकर बाजार में, उनकी अवधारणाएं चार दशक से भी अधिक समय से विद्यमान हैं। उन्हें आज कुछ परिष्कृत कर पब्लिक टूल्स के रूप में भुनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीपीटी यानी जेनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर इसका एक उदाहरण मात्र है।
लार्ज लैंग्वेज मॉडल का अब जीपीटी में हो रहा इस्तेमाल
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा, जीपीटी का आधार ‘जेनरेटिंग एंड रीवर्डिंग टेक्स्ट’ युक्ति है। ओपन एआई के ‘चैट जीपीटी’ से लेकर गूगल के ‘जैमिनी’ तक, ऐसे अनेक कंज्यूमर प्रोडक्ट्स बनाने में इसे अपनाया जा रहा है। किंतु यह एआई की कोई नई विधा नहीं है। यह दशकों पुरानी आधारभूत प्रणाली है। इसी पर ‘लार्ज लैंग्वेज मॉडल’ (एलएलएम) आधारित है, जिसका प्रकारांतर विविध उपयोग होता रहा है। अब जीपीटी में हो रहा है।
जीपीटी पर सर्च का नतीजा 100 फीसदी सटीक नहीं
एआई के वर्तमान और भविष्य को लेकर इस विशेष विमर्श में वरिष्ठ एआई विज्ञानी ने NBT से खुलकर अपनी बात कही। जनसाधारण को समझाने के लिए उन्होंने कहा, यदि आप जीपीटी को एआई का आधुनिक उदाहरण मान रहे हैं, तो आप भ्रमित हैं। उन्होंने कहा, ‘जेनरेटिंग एंड रीवर्डिंग टेक्स्ट’ की विधा में कुछ परिष्करण अवश्य हुआ है, ग्रामर और स्पेलिंग में अब कुछ अधिक निपुणता आई है। किंतु तब भी जीपीटी पर सर्च का परिणाम शत-प्रतिशत सटीक नहीं है। इसीलिए इसमें सोर्स से पुष्टि की आवश्यकता पड़ रही है। इसके परिणाम को परखने में भी बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता पड़ रही है। अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
AI के विकल्पों पर किया जा रहा है विचार
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा कि बाजार अपने स्थान पर है और ठोस रिसर्च अपने। केवल पैसों के पीछे भागने से तकनीकी विकास नहीं होगा। ढर्रे पर दोहन करते रहे तो उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। इससे बचने के लिए तकनीकी को निरंतर आगे बढ़ाना आवश्यक होता है। वर्ष 1983 से इस विधा में शोध कर रहे एलेन ब्लैकवेल इंटरडिसिप्लिनरी डिजाइन के प्रोफेसर होने के साथ ही 'कैम्ब्रिज ग्लोबल चैलेंजेस' के सह-संस्थापक भी हैं। वह अपनी पुस्तक 'मोरल कोड्स : डिजाइनिंग आल्टरनेटिव्स टू एआई' के लिए चर्चा में रहे हैं। प्रोफेसर ब्लैकवेल और उनकी टीम एआई के विकल्पों पर शोध कर रही है।
एआई के विकल्पों पर क्यों?
वह कहते हैं, हम कंप्यूटर को अपने लिए और अधिक उपयोगी कैसे बनाएं, जन उपयोगी केसै बनाएं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। एआई इसका एक उपाय है, किंतु एकमात्र उपाय नहीं। कंप्यूटर विज्ञान में असीम संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें मानव विकास को केंद्र में रखना होगा। हमें और अधिक रचनात्मक और अधिक संवेदनशील व पूर्ण उत्तरदाई होना होगा। अंततः तकनीकी के अंतिम उपयोगकर्ता के रूप में हमें जनसाधारण को यह प्रतिनिधित्व देना होगा कि वह अपने उपयोग और आवश्यकता के अनुरूप कंप्यूटर को निर्देश देने में सक्षम हो सके।
यह फिलॉसफी नहीं, इंजीनियरिंग है
प्रोफेसर ब्लैकवेल ने कहा कि एआई और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मूल नैतिक सिद्धांत गढ़ने होंगे। उन्होंने कहा कि 'यह फिलॉसफी नहीं है, इंजीनियरिंग है'। हमें एआई और आईटी के छात्रों को नैतिकता का विशेष पाठ नहीं पढ़ाना है, वरन उन्हें नैतिक बनाना है। नैतिकता एक स्वाभाविक तथ्य है, यह कृत्रिम नहीं हो सकता है। जब हमारी बुद्धि ही नैतिक नहीं होगी, तब हम कृत्रिम बुद्धि में कृत्रिम नैतिकता कैसे डालेंगे। उन्होंने जोर देकर यह कहा कि यदि हम एआई के प्रति सेंसिबल और जिम्मेदार दृष्टिकोण नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे हम इसके उन्नत भविष्य के लिए आवश्यक सभी महत्वपूर्ण संसाधन खोते जाएंगे। इन संसाधनों में युवा प्रतिभा भी अति महत्वपूर्ण घटक है। ब्लैकवेल ने कहा, मैं पूछता हूं कि आधारभूत अध्ययन, अध्यापन और शोध के बिना हम प्रतिभा को कैसे संजो सकते हैं?