नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय के NEST के संयुक्त सचिव महावीर सिंघवी ने चीन की ओर संकेत करते हुए कहा है कि किसी एक देश से महत्वपूर्ण और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए भारत दुनिया के दूसरे देशों की तरफ संभावनाओं को तलाश रहा है। इसका मकसद यह है कि भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा कर सके। नई दिल्ली में छठे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सम्मेलन और प्रदर्शनी में सिंघवी ने कहा-भारत सरकार ने हाल ही में अर्जेंटीना के साथ महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह अन्य देशों में भी खनिजों की खोज कर रहा है। ट्यूजडे ट्रीविया में इस बात को समझते हैं।
अभी भारत चीन पर इन चीजों के लिए निर्भर
वर्तमान में भारत महत्वपूर्ण खनिजों खासतौर पर लीथियम, कोबाल्ट, निकल और ग्रेफाइट के आयात के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। हालांकि, सरकार राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (एनसीएमएम) जैसी नीतियों और खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2023 में संशोधनों के माध्यम से इस निर्भरता को कम करने के लिए काम कर रही है।
किसी एक पर निर्भरता से बढ़ती है कमजोरी
सिंघवी ने कहा कि दुर्लभ खनिजों के लिए हमारे पास संसाधन तो हो सकते हैं, लेकिन उस तरह की प्रसंस्करण क्षमताएं नहीं हैं जो अयस्क को उपयोगी इंडस्ट्री इनपुट में बदल सकें। यह निर्भरता हमें न केवल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति, बल्कि भू-राजनीति और किसी एक पर ही सप्लाई फोकस करने की कमजोरियों के प्रति भी उजागर करती हैं।
लीथियम, कोबाल्ट का 100 फीसदी आयात करता है
भारत की इस रणनीति का मकसद घरेलू क्षमता को बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखला की लचीलापन को मज़बूत करना और भारत की भविष्य की खनिज आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए विदेशी खनिज परिसंपत्तियों के अधिग्रहण को सुगम बनाना है। वर्तमान में, भारत लिथियम और कोबाल्ट के लिए 100% आयात पर निर्भर है। वहीं, निकल और तांबे के लिए आयात पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक है। दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स का काफी ज्यादा इस्तेमाल मिसाइलों, रडार सिस्टम और ड्रोंस में भी होता है। ऐसे में पूरी दुनिया इसके पीछे पड़ी है।
फिर कौन से देशों की ओर रुख कर सकता है भारत
चीन भारत को इन महत्वपूर्ण खनिजों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो वैश्विक बाजार के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है। सिंघवी ने कहा कि भारत अपनी स्थानीय खपत को पूरा करने के लिए अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों पर विचार कर रहा है। भारत ने अर्जेंटीना में लीथियम की खोज के लिए पहले ही समझौते कर लिए हैं। कुछ अन्य देशों के साथ भी बातचीत आगे बढ़ रही है। ये साझेदारियां केवल व्यावसायिक लेन-देन नहीं हैं। ये रणनीतिक खतरे पैदा करती हैं, हमारे आपूर्ति आधारों में विविधता लाती हैं और हमें झटकों से बचाती हैं। अर्जेंटीना से चीन के बेहतर संबंध हैं। चीन ने यहां भारी-भरकम निवेश कर रखा है।
रेयर अर्थ क्या होते हैं, क्या है ये चीज
नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का करीब 90 फीसदी रेयर अर्थ मिनरल्स चीन के पास है। दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स ( Rare Earth Minerals ) 17 दुर्लभ मेटल्स का समूह होते हैं। ये मॉडर्न तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस सिस्टम और ग्रीन एनर्जी के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें कुल 17 एलिमेंट्स 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides) जैसे कि लैन्थेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेसियोडिमियम, समारियम, यूरोपियम और स्कैन्डियम (Scandium), यिट्रियम (Yttrium) होते हैं।
रेयर अर्थ के पीछे क्यों भाग रही दुनिया
रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के अलावा पवन टर्बाइनों और सोलर पैनलों, मिसाइल, रडार और अन्य डिफेंस सिस्टम, चुंबक (Magnets), लाइटिंग, कैमरा लेंस वगैरह में होता है। रेयर अर्थ के भंडार के मामले में चीन और ब्राजील के बाद भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है, लेकिन उत्पादन और प्रोसेसिंग में चीन से काफी पीछे है।
अभी भारत चीन पर इन चीजों के लिए निर्भर
वर्तमान में भारत महत्वपूर्ण खनिजों खासतौर पर लीथियम, कोबाल्ट, निकल और ग्रेफाइट के आयात के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। हालांकि, सरकार राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (एनसीएमएम) जैसी नीतियों और खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2023 में संशोधनों के माध्यम से इस निर्भरता को कम करने के लिए काम कर रही है।
किसी एक पर निर्भरता से बढ़ती है कमजोरी
सिंघवी ने कहा कि दुर्लभ खनिजों के लिए हमारे पास संसाधन तो हो सकते हैं, लेकिन उस तरह की प्रसंस्करण क्षमताएं नहीं हैं जो अयस्क को उपयोगी इंडस्ट्री इनपुट में बदल सकें। यह निर्भरता हमें न केवल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति, बल्कि भू-राजनीति और किसी एक पर ही सप्लाई फोकस करने की कमजोरियों के प्रति भी उजागर करती हैं।
लीथियम, कोबाल्ट का 100 फीसदी आयात करता है
भारत की इस रणनीति का मकसद घरेलू क्षमता को बढ़ाना, आपूर्ति श्रृंखला की लचीलापन को मज़बूत करना और भारत की भविष्य की खनिज आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए विदेशी खनिज परिसंपत्तियों के अधिग्रहण को सुगम बनाना है। वर्तमान में, भारत लिथियम और कोबाल्ट के लिए 100% आयात पर निर्भर है। वहीं, निकल और तांबे के लिए आयात पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक है। दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स का काफी ज्यादा इस्तेमाल मिसाइलों, रडार सिस्टम और ड्रोंस में भी होता है। ऐसे में पूरी दुनिया इसके पीछे पड़ी है।
फिर कौन से देशों की ओर रुख कर सकता है भारत
चीन भारत को इन महत्वपूर्ण खनिजों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो वैश्विक बाजार के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है। सिंघवी ने कहा कि भारत अपनी स्थानीय खपत को पूरा करने के लिए अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों पर विचार कर रहा है। भारत ने अर्जेंटीना में लीथियम की खोज के लिए पहले ही समझौते कर लिए हैं। कुछ अन्य देशों के साथ भी बातचीत आगे बढ़ रही है। ये साझेदारियां केवल व्यावसायिक लेन-देन नहीं हैं। ये रणनीतिक खतरे पैदा करती हैं, हमारे आपूर्ति आधारों में विविधता लाती हैं और हमें झटकों से बचाती हैं। अर्जेंटीना से चीन के बेहतर संबंध हैं। चीन ने यहां भारी-भरकम निवेश कर रखा है।
रेयर अर्थ क्या होते हैं, क्या है ये चीज
नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का करीब 90 फीसदी रेयर अर्थ मिनरल्स चीन के पास है। दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स ( Rare Earth Minerals ) 17 दुर्लभ मेटल्स का समूह होते हैं। ये मॉडर्न तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस सिस्टम और ग्रीन एनर्जी के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें कुल 17 एलिमेंट्स 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides) जैसे कि लैन्थेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेसियोडिमियम, समारियम, यूरोपियम और स्कैन्डियम (Scandium), यिट्रियम (Yttrium) होते हैं।
रेयर अर्थ के पीछे क्यों भाग रही दुनिया
रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के अलावा पवन टर्बाइनों और सोलर पैनलों, मिसाइल, रडार और अन्य डिफेंस सिस्टम, चुंबक (Magnets), लाइटिंग, कैमरा लेंस वगैरह में होता है। रेयर अर्थ के भंडार के मामले में चीन और ब्राजील के बाद भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है, लेकिन उत्पादन और प्रोसेसिंग में चीन से काफी पीछे है।
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