पटना/नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक बार फिर सियासी दांव-पेच शुरू हो गए हैं। इसके बीच चिराग पासवान के एक बयान ने वहां की राजनीति में सस्पेंस पैदा कर दिया है। उन्होंने संकेत दिया है कि वह इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में खम ठोकेंगे। इसके बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या चिराग पासवान खुद को बिहार में NDA सरकार के चेहरे के रूप में देख रहे हैं? या उनका बयान BJP और JDU पर दबाव बनाने की रणनीति भर है? 2020 में चिराग बिगाड़ चुके खेलदरअसल, 2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की अनदेखी करने का परिणाम JDU-BJP देख चुकी हैं। ऐसे में इस बार उनकी इस बात को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं ले सकती। उनके ऐलान के बाद JDU और BJP के खेमे में हलचल है। एक तरह से सत्ता की भागीदारी को लेकर उनका दावा पेश करना NDA के सारे समीकरण बिगाड़ सकता है। JDU ने भी बरकरार रखा दबावJDU पहले ही चुनाव बाद नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बने रहने का दावा कर चुका है। पार्टी BJP पर दबाव बना रही है कि चुनाव से पहले वह ऐलान करे कि चुनाव बाद भी नीतीश कुमार ही NDA के नेता बने रहेंगे। अब चिराग का चुनाव को लेकर ऐलान सारी योजनाओं को चक्करघिन्नी बना सकता है। मर्यादा बड़ी या समर्थकउधर वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले के बाद जिस तरह के आक्रामक बयान BJP सांसद निशिकांत दूबे ने दिए, उससे पार्टी असहज हुई। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनके बयान से पार्टी की तरफ से दूरी बना ली। लेकिन इसका असर पार्टी के समर्थकों पर पड़ा। सोशल मीडिया पर पार्टी समर्थक निशिकांत दूबे के पक्ष में आ गए। वे लगातार इस मामले में पार्टी से उनका साथ देने की मांग करने लगे। इससे पार्टी के अंदर दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है। जिस तरह की भावना समर्थकों ने दिखाई है, पार्टी उन्हें शांत करने की कोशिश में जुट गई है। पार्टी नेतृत्व अब इस मामले को जल्द से जल्द समाप्त कर कम से कम बयानबाजी करने की रणनीति बना रहा है। नवभारत टाइम्स की खास पेशकश विशुद्ध राजनीति से साभार
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