नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान आरक्षण को लेकर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान देश में आरक्षण प्रणाली की तुलना रेलवे से की जहां पहले से सीट सुरक्षित कर चुके लोग नहीं चाहते कि अन्य लोग उसी डिब्बे में प्रवेश करें। मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने की। रेलवे की तरह आरक्षण का धंधासुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, बात यह है कि इस देश में आरक्षण का धंधा रेलवे की तरह हो गया है। जो लोग बोगी में घुसे हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और घुसे। यही पूरा खेल है। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है और पीछे भी बोगियां जोड़ी जा रही हैं। सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, जब आप समावेशिता के सिद्धांत का पालन करते हैं, तो राज्य अधिक वर्गों की पहचान करने के लिए बाध्य होते हैं। ओबीसी आरक्षण पर उठाया सवालसामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग होंगे। उन्हें लाभ से वंचित क्यों रखा जाना चाहिए? इसे एक विशेष परिवार या समूहों तक ही सीमित क्यों रखा जाना चाहिए? इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि राज्य के बंठिया आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण दिया, बिना यह पता लगाए कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं या नहीं। उन्होंने तर्क दिया कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से अलग है और ओबीसी को स्वचालित रूप से राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता है।
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