पटनाः उत्तर बिहार में एनडीए को जहां महागठबंधन से बहुत ही कठिन संघर्ष के आसार हैं, मुजफ्फरपुर जिला उनमें से एक है। यही वजह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी अपने दूसरे दौरे की शुरुआत मुजफ्फरपुर से करने जा रहे हैं। गत चुनाव वर्ष 2020 में हुई जीत हार और वर्तमान में बदली राजनीतिक स्थिति पर मंथन करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 30 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर आने को एनडीए के रणनीतिकार एक उद्धारक के रूप में देखने लगे हैं।
वैसे भी एनडीए की स्थिति मुजफ्फरपुर में बहुत ठीक नहीं है। इस जिले के सात विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां महागठबंधन की स्थिति दुरुस्त है। वीआईपी के महागठबंधन में शामिल होने के बाद मुजफ्फरपुर में नई चुनौतियां शामिल हो गई हैं। अब देखना यह है कि इन चुनौतियों के विरुद्ध मुजफ्फरपुर में 30 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी का शंखनाद एनडीए की अटकी बेड़ा को कैसे बेड़ा पार करते हैं।
कहां खड़ा है एनडीए?
वर्ष 2025 के चुनावी जंग में एनडीए की चुनौतियां बढ़ गई हैं। वर्ष 2020 में राजद गायघाट, मीनापुर, कुढ़नी, मुजफ्फरपुर में एनडीए को परास्त कर चुकी थी। अब उस जीती हुई सीट में वीआईपी की जीती हुई साहिबगंज और बोचहा सीट भी शामिल हो गई है। थोड़ी राहत यह जरूर है कि वीआईपी के जीते हुए विधायक बीजेपी की सदस्यता ले ली है। फिर भी वीआईपी की राजनीति का केंद्र मुजफ्फरपुर रहा है और इस ताकत का महागठबंधन के साथ जुड़ने से महागठबंधन मजबूत तो दिख रहा है। वर्ष 2022 के उपचुनाव में बोचहा सीट पहले ही राजद के पाले में आ गई है। यह भीं एक नया संकट है। यहां से राजद के अमन पासवान विधायक हैं।
हारी हुई सीटें और एनडीए
वर्ष 2020 की हारी हुई सूची में गायघाट शामिल है। गायघाट से गत चुनाव में जातीय ने महेश्वर यादव को चुनावी जंग में उतारा था। इन्हें राजद के निरंजन राय के हाथों पराजित होना पड़ा। एनडीए ने राजनीति बदलते यहां से यादव के बदले राजपूत जाति की कोमल सिंह को जदयू से उतरा है। कोमल सिंह लोजपा आर की संसद वीणा देवी की बेटी है। राजद से सीटिंग विधायक निरंजन राय को ही उतारा है।
मीनापुर से राजद के राजीव कुमार ने जेडीयू के मनोज कुमार को हराया था। इस बार अजय कुमार बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में राजद के राजीव कुमार को टक्कर दे रहे हैं।
बोचहा विधासनभा वर्ष 2022,के उप चुनाव में राजद के अमन पासवान ने जीत दर्ज की थी। इस बार राजद के अमन पासवान का सामना लोजपा आर की बेबी कुमारी से है।कुढ़नी विधानसभा का चुनाव वर्ष 2020 में एन डी ए हार गई थी। पर उपचुनाव में बीजेपी के केदार गुप्ता ने जीत दर्ज कर ली। इस बार बीजेपी के केदार गुप्ता की जंग राजद के सुनील सुमन से है।
कांटी की जंग भी राजद के मो इसराइल मंसूरी ने जीत ली थी। यहां पुराने उम्मीदवार ही जंग में है। राजद से इजरायल मंसूरी को जंग में उतारा तो निर्दलीय अजित सिंह इस बार जदयू से खम ठोक रहे हैं।
साहिबगंज से वर्ष 2020 में वीआईपी के राजू सिंह ने राजद के रामविचार राय को उतारा था। इस बार राजद ने उम्मीदवार बदल कर राजद ने पृथ्वीनाथ राय को जंग में उतारा है। बीजेपी ने वीआईपी के जीते विधायक को पार्टी की सदस्यता दिलाई और फिर इस बार राजू सिंह की भाजपा की टिकट पर चुनावी जंग में उतारा।
कुढ़नी विधानसभा की जंग में वर्ष 2020 में राजद के अनिल सहनी ने जीत दर्ज की थी। पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के केदार गुप्ता ने जीत हासिल कर ली। पर यह सीट वी आई पी के महागठबंधन से जुड़ने के बाद और भी कठिन हो गया है।
मुजफ्फरपुर को मोदी के शंखनाद का इंतजार
एनडीए के रणनीतिकारों को 30 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर की धरती से पीएम नरेंद्र मोदी के हुंकार का इंतजार है। चुनावी जनसभा में नरेंद्र मोदी कौन सा पत्ता फेंकते है इसका इंतजार पक्ष और विपक्ष को समान रूप से है। एनडीए जहां मुजफ्फरपुर की 11 सीटों पर जीत का जज्बा हासिल कर चुनावी जंग में उतर चुका हैं। वही विपक्ष जीती हुई सीटों के साथ हारी हुई सीट पर भी जीत की तमन्ना के साथ चुनावी समर में डटी हुई है।
वैसे भी एनडीए की स्थिति मुजफ्फरपुर में बहुत ठीक नहीं है। इस जिले के सात विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां महागठबंधन की स्थिति दुरुस्त है। वीआईपी के महागठबंधन में शामिल होने के बाद मुजफ्फरपुर में नई चुनौतियां शामिल हो गई हैं। अब देखना यह है कि इन चुनौतियों के विरुद्ध मुजफ्फरपुर में 30 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी का शंखनाद एनडीए की अटकी बेड़ा को कैसे बेड़ा पार करते हैं।
कहां खड़ा है एनडीए?
वर्ष 2025 के चुनावी जंग में एनडीए की चुनौतियां बढ़ गई हैं। वर्ष 2020 में राजद गायघाट, मीनापुर, कुढ़नी, मुजफ्फरपुर में एनडीए को परास्त कर चुकी थी। अब उस जीती हुई सीट में वीआईपी की जीती हुई साहिबगंज और बोचहा सीट भी शामिल हो गई है। थोड़ी राहत यह जरूर है कि वीआईपी के जीते हुए विधायक बीजेपी की सदस्यता ले ली है। फिर भी वीआईपी की राजनीति का केंद्र मुजफ्फरपुर रहा है और इस ताकत का महागठबंधन के साथ जुड़ने से महागठबंधन मजबूत तो दिख रहा है। वर्ष 2022 के उपचुनाव में बोचहा सीट पहले ही राजद के पाले में आ गई है। यह भीं एक नया संकट है। यहां से राजद के अमन पासवान विधायक हैं।
हारी हुई सीटें और एनडीए
वर्ष 2020 की हारी हुई सूची में गायघाट शामिल है। गायघाट से गत चुनाव में जातीय ने महेश्वर यादव को चुनावी जंग में उतारा था। इन्हें राजद के निरंजन राय के हाथों पराजित होना पड़ा। एनडीए ने राजनीति बदलते यहां से यादव के बदले राजपूत जाति की कोमल सिंह को जदयू से उतरा है। कोमल सिंह लोजपा आर की संसद वीणा देवी की बेटी है। राजद से सीटिंग विधायक निरंजन राय को ही उतारा है।
मीनापुर से राजद के राजीव कुमार ने जेडीयू के मनोज कुमार को हराया था। इस बार अजय कुमार बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में राजद के राजीव कुमार को टक्कर दे रहे हैं।
बोचहा विधासनभा वर्ष 2022,के उप चुनाव में राजद के अमन पासवान ने जीत दर्ज की थी। इस बार राजद के अमन पासवान का सामना लोजपा आर की बेबी कुमारी से है।कुढ़नी विधानसभा का चुनाव वर्ष 2020 में एन डी ए हार गई थी। पर उपचुनाव में बीजेपी के केदार गुप्ता ने जीत दर्ज कर ली। इस बार बीजेपी के केदार गुप्ता की जंग राजद के सुनील सुमन से है।
कांटी की जंग भी राजद के मो इसराइल मंसूरी ने जीत ली थी। यहां पुराने उम्मीदवार ही जंग में है। राजद से इजरायल मंसूरी को जंग में उतारा तो निर्दलीय अजित सिंह इस बार जदयू से खम ठोक रहे हैं।
साहिबगंज से वर्ष 2020 में वीआईपी के राजू सिंह ने राजद के रामविचार राय को उतारा था। इस बार राजद ने उम्मीदवार बदल कर राजद ने पृथ्वीनाथ राय को जंग में उतारा है। बीजेपी ने वीआईपी के जीते विधायक को पार्टी की सदस्यता दिलाई और फिर इस बार राजू सिंह की भाजपा की टिकट पर चुनावी जंग में उतारा।
कुढ़नी विधानसभा की जंग में वर्ष 2020 में राजद के अनिल सहनी ने जीत दर्ज की थी। पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के केदार गुप्ता ने जीत हासिल कर ली। पर यह सीट वी आई पी के महागठबंधन से जुड़ने के बाद और भी कठिन हो गया है।
मुजफ्फरपुर को मोदी के शंखनाद का इंतजार
एनडीए के रणनीतिकारों को 30 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर की धरती से पीएम नरेंद्र मोदी के हुंकार का इंतजार है। चुनावी जनसभा में नरेंद्र मोदी कौन सा पत्ता फेंकते है इसका इंतजार पक्ष और विपक्ष को समान रूप से है। एनडीए जहां मुजफ्फरपुर की 11 सीटों पर जीत का जज्बा हासिल कर चुनावी जंग में उतर चुका हैं। वही विपक्ष जीती हुई सीटों के साथ हारी हुई सीट पर भी जीत की तमन्ना के साथ चुनावी समर में डटी हुई है।
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