जॉन अब्राहम देशभक्ति फिल्मों में संयम की जरूरत पर जोर दिया है। वहीं उधर 'द बंगाल फाइल्स' के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में जॉन अब्राहम को लेकर कहा था कि वो सिर्फ एक एक्टर हैं, इतिहासकार या फिर कोई बुद्धिजीवी नहीं। उन्होंने कहा था कि वह बाइक चलाने और अपनी बॉडी दिखाने और प्रोटीन खाने के लिए जाने जाते हैं, उन्हें इन्हीं चीजों पर ध्यान देना चाहिए, फिल्मों में न ही घुसे तो बेहतर है।
जॉन अब्राहम का सिनेमाई सफर बदलावों से भरा रहा है। उन्होंने 2003 में 'जिस्म' जैसी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में 'गरम मसाला' और 'दोस्ताना' जैसी हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्मों में काम किया। समय के साथ, उनकी पसंद बदली और उन्होंने 'मद्रास कैफ़े', 'परमाणु' और हाल ही में 'द डिप्लोमैट' जैसी राजनीतिक और देशभक्ति से जुड़ी फिल्मों में काम करना शुरू किया। जॉन का मानना है कि ये बदलाव जिम्मेदारी लेकर आता है। उनका कहना है कि जब एक्टर और फिल्ममेकर राजनीति या देशभक्ति से जुड़ी कहानियां सुनाते हैं तो उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इसे सोच-समझकर और सावधानी से करें।
'जोर-जोर से चिल्लाने की जरूरत नहीं है'पीटीआई से बातचीत में जॉन ने कहा कि राष्ट्र के बारे में बनी फिल्मों को सार्थक बनाने के लिए जोर-जोर से चिल्लाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, 'फिल्में बिना किसी कट्टर राष्ट्रवाद के संयमित और जिम्मेदाराना तरीके से देशभक्तिपूर्ण हो सकती हैं।' उन्होंने अपनी फिल्म 'द डिप्लोमैट' का उदाहरण देते हुए इसे समझाया, जिसमें उन्होंने राजनेता जेपी सिंह की भूमिका निभाई है। जॉन ने कहा, 'ऐसी फिल्में होती हैं जो देशभक्ति से भरपूर होती हैं और बहुत मायने रखती हैं।'
'जहां आप राष्ट्रवादी नहीं होते, आप अपनी छाती नहीं पीटते'उन्होंने आगे कहा, 'इसलिए नहीं कि मैंने ऐसा किया है, बल्कि इसलिए कि द डिप्लोमैट उन फिल्मों में से एक है जहां आप राष्ट्रवादी नहीं होते, आप अपनी छाती नहीं पीटते। बल्कि आप एक लचीले, मौन और संयमित तरीके से देशभक्त होते हैं।'
'रहने के लिए सबसे अनुकूल माहौल नहीं है'जॉन ने उस दौर पर भी विचार किया जिसमें हम जी रहे हैं। उनके शब्दों में इसे लेकर कड़ी चेतावनी थी कि आज समाज किस तरह आकार ले रहा है। उन्होंने कहा, 'प्लीज मेरे शब्दों को समझें और याद रखें, मुझे लगता है कि हम एक हाइपर पॉलिटिकल माहौल में जी रहे हैं जहां धर्म हमें बहुत निर्णायक रूप से बांट रहा है, जो रहने के लिए सबसे अनुकूल माहौल नहीं है।'
'कुछ फिल्में इसका फायदा उठा रही हैं'उन्होंने कहा, 'कुछ फिल्में इसका फायदा उठा रही हैं और अच्छी कमाई कर रही हैं। यह देखना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जब आप कुछ फिल्में देखते हैं, तो आप पाते हैं कि उनमें कोई बारीकियां या क्राफ्ट नहीं है, बल्कि आप देखते हैं कि उनमें कुछ बनावटी बातें हैं और आज यह देखना डरावना है।'
'कभी भी ऐसी फिल्में नहीं करेंगे जो लोगों को...'इसी के साथ जॉन ने कॉमेंट पर फिल्म मेकर विवेक अग्निहोत्री ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। इससे पहले, जॉन ने 'द कश्मीर फाइल्स' जैसी फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा था कि वह कभी भी ऐसी फिल्में नहीं करेंगे जो लोगों को राजनीतिक रूप से प्रभावित करती हों। हाल ही में अग्निहोत्री ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में जॉन पर पलटवार करते हुए उनसे सिनेमा पर कॉमेंट करने से पूरी तरह बचने को कहा। उन्होंने कहा, 'वह मोटरबाइक चलाने, अपनी बॉडी दिखाने और प्रोटीन खाने के लिए जाने जाते हैं, उन्हें इन्हीं चीज़ों पर ध्यान देना चाहिए। फिल्मों में न ही घुसे तो बेहतर है।'
'जॉन इतिहासकार, बुद्धिजीवी, थिंकर और राइटर नहीं'विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में जॉन पर निशाना साधते हुए कहा था, 'जॉन इतिहासकार, बुद्धिजीवी, थिंकर और राइटर नहीं हैं। वह सत्यमेव जयते जैसी कट्टर राष्ट्रवादी फिल्में भी बनाते रहे हैं। उन्होंने द डिप्लोमैट और उसी तरह की कई मूवीज बनाई हैं। उन्होंने कई कारणों से कहा होगा। अगर आपने मुझे बताया होता कि किसी महान इतिहासकार ने यह कहा है, तो मैं इसे समझ जाता। मुझे इसकी परवाह नहीं कि वह क्या कह रहे हैं। भारत का माहौल कब हाइपर-पॉलिटिकल नहीं था? ऐसा कब था जब भारत में हिंदू-मुस्लिम और जातिगत मुद्दे कभी अस्तित्व में नहीं रहे?'
जॉन अब्राहम का सिनेमाई सफर बदलावों से भरा रहा है। उन्होंने 2003 में 'जिस्म' जैसी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में 'गरम मसाला' और 'दोस्ताना' जैसी हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्मों में काम किया। समय के साथ, उनकी पसंद बदली और उन्होंने 'मद्रास कैफ़े', 'परमाणु' और हाल ही में 'द डिप्लोमैट' जैसी राजनीतिक और देशभक्ति से जुड़ी फिल्मों में काम करना शुरू किया। जॉन का मानना है कि ये बदलाव जिम्मेदारी लेकर आता है। उनका कहना है कि जब एक्टर और फिल्ममेकर राजनीति या देशभक्ति से जुड़ी कहानियां सुनाते हैं तो उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इसे सोच-समझकर और सावधानी से करें।
'जोर-जोर से चिल्लाने की जरूरत नहीं है'पीटीआई से बातचीत में जॉन ने कहा कि राष्ट्र के बारे में बनी फिल्मों को सार्थक बनाने के लिए जोर-जोर से चिल्लाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, 'फिल्में बिना किसी कट्टर राष्ट्रवाद के संयमित और जिम्मेदाराना तरीके से देशभक्तिपूर्ण हो सकती हैं।' उन्होंने अपनी फिल्म 'द डिप्लोमैट' का उदाहरण देते हुए इसे समझाया, जिसमें उन्होंने राजनेता जेपी सिंह की भूमिका निभाई है। जॉन ने कहा, 'ऐसी फिल्में होती हैं जो देशभक्ति से भरपूर होती हैं और बहुत मायने रखती हैं।'
'जहां आप राष्ट्रवादी नहीं होते, आप अपनी छाती नहीं पीटते'उन्होंने आगे कहा, 'इसलिए नहीं कि मैंने ऐसा किया है, बल्कि इसलिए कि द डिप्लोमैट उन फिल्मों में से एक है जहां आप राष्ट्रवादी नहीं होते, आप अपनी छाती नहीं पीटते। बल्कि आप एक लचीले, मौन और संयमित तरीके से देशभक्त होते हैं।'
'रहने के लिए सबसे अनुकूल माहौल नहीं है'जॉन ने उस दौर पर भी विचार किया जिसमें हम जी रहे हैं। उनके शब्दों में इसे लेकर कड़ी चेतावनी थी कि आज समाज किस तरह आकार ले रहा है। उन्होंने कहा, 'प्लीज मेरे शब्दों को समझें और याद रखें, मुझे लगता है कि हम एक हाइपर पॉलिटिकल माहौल में जी रहे हैं जहां धर्म हमें बहुत निर्णायक रूप से बांट रहा है, जो रहने के लिए सबसे अनुकूल माहौल नहीं है।'
'कुछ फिल्में इसका फायदा उठा रही हैं'उन्होंने कहा, 'कुछ फिल्में इसका फायदा उठा रही हैं और अच्छी कमाई कर रही हैं। यह देखना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जब आप कुछ फिल्में देखते हैं, तो आप पाते हैं कि उनमें कोई बारीकियां या क्राफ्ट नहीं है, बल्कि आप देखते हैं कि उनमें कुछ बनावटी बातें हैं और आज यह देखना डरावना है।'
'कभी भी ऐसी फिल्में नहीं करेंगे जो लोगों को...'इसी के साथ जॉन ने कॉमेंट पर फिल्म मेकर विवेक अग्निहोत्री ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। इससे पहले, जॉन ने 'द कश्मीर फाइल्स' जैसी फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा था कि वह कभी भी ऐसी फिल्में नहीं करेंगे जो लोगों को राजनीतिक रूप से प्रभावित करती हों। हाल ही में अग्निहोत्री ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में जॉन पर पलटवार करते हुए उनसे सिनेमा पर कॉमेंट करने से पूरी तरह बचने को कहा। उन्होंने कहा, 'वह मोटरबाइक चलाने, अपनी बॉडी दिखाने और प्रोटीन खाने के लिए जाने जाते हैं, उन्हें इन्हीं चीज़ों पर ध्यान देना चाहिए। फिल्मों में न ही घुसे तो बेहतर है।'
'जॉन इतिहासकार, बुद्धिजीवी, थिंकर और राइटर नहीं'विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में जॉन पर निशाना साधते हुए कहा था, 'जॉन इतिहासकार, बुद्धिजीवी, थिंकर और राइटर नहीं हैं। वह सत्यमेव जयते जैसी कट्टर राष्ट्रवादी फिल्में भी बनाते रहे हैं। उन्होंने द डिप्लोमैट और उसी तरह की कई मूवीज बनाई हैं। उन्होंने कई कारणों से कहा होगा। अगर आपने मुझे बताया होता कि किसी महान इतिहासकार ने यह कहा है, तो मैं इसे समझ जाता। मुझे इसकी परवाह नहीं कि वह क्या कह रहे हैं। भारत का माहौल कब हाइपर-पॉलिटिकल नहीं था? ऐसा कब था जब भारत में हिंदू-मुस्लिम और जातिगत मुद्दे कभी अस्तित्व में नहीं रहे?'
You may also like
नैनीताल के मल्लीताल में लगी भीषण आग
छेड़छाड़ के मामले ने मचाया हंगामा, आसिफ और शोएब गिरफ्तार, लंगड़ाते हुए दिखे, बोले- “अब कभी नहीं करेंगे गलती!”
रोजाना ₹100 की बचत से बनाएं धन का ढेर, देखें प्लान!
'वोट चोरी' का आरोप लगाकर नाकामियों को छिपा रहा विपक्ष: रोहन गुप्ता
जम्मू में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में आवश्यक सेवाओं को प्राथमिकता पर करें बहाल: मनोज सिन्हा