काठमांडू: नेपाल में GEN-G के हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफा देकर किसी अज्ञात जगह पर चले गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की संसद, सरकार का सचिवालय सिंह दरबार, सुप्रीम कोर्ट और प्रमुख सरकारी इमारतों पर हमला बोल दिया और आग लगा दी। मंगलवार देर रात को स्थिति संभालने के लिए सेना को तैनात कर दिया गया है। एक सप्ताह पहले तक ओली सोचा भी नहीं था कि ओली को इस तरह से सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा। जुलाई 2024 में चौथी बार प्रधानमंत्री बनने वाले ओली पूरी ताकत से राज कर रहे थे और किसी भी असहमति को दबा रहे थे।
ओली ने संकेतों को समझने से किया इनकार
हालांकि, उनकी कड़वी बयानबाजी और कठोर रवैये ने उन्हें लगातार अलोकप्रिय बना दिया था, लेकिन यह ऐसी चीज थी जिसे वह स्वीकार नहीं कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख में नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमिरे ने बताया कि ओली के खिलाफ खिलाफ नई पीढ़ी में लगातार गुस्सा बढ़ रहा था और उसे हवा मिली जब पिछले सप्ताह ओली मंत्रिमंडल ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया। ये प्लेटफॉर्म वह जगह थी, जहां युवा राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना गुस्सा निकाल रहे थे।
युवाओं पर गोलीबारी ने लिख दी अंत की कहानी
इस फैसले के बाद भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनकारी युवा, जिनमें अधिकांस 30 से कम उम्र के थे, सड़कों पर उतर गए। इस बारूद में चिंगारी डालने का काम किया, ओली सरकार की सोमवार को की गई बर्बर कार्रवाई ने, जिसमें 20 लोगों की मौत हुई। इनमें कुछ स्कूल यूनिफॉर्म में थे। इसने घटनाओं की ऐसी शृंखला शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप ओली को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
सोमवार रात को हुई आपात बैठक के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन सूचना मंत्री और UML नेता पीएस गुरुंग ने कहा कि ओली के पद छोड़ने का सवाल ही नहीं है। जाहिर है, ओली और उनके वफादारों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होने वाला था कि अगली सुबह क्या लेकर आने वाली है।
नेपाल की सत्ता पर कब्जे का खेल
नेपाल में ये गुस्सा नया नहीं था और इसे लेकर आवाज भी उठ रही थी, लेकिन सत्ता के नशे में ओली और उनके सिपहसालारों ने इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की। नेपाल की राजनीति में पिछले कई सालों से ओली नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा और सीपीएन (माओवादी सेंटर) के पुष्प कमल दहल प्रचंड बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करते रहे थे। इस तरह सभी शीर्ष नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ एक कवच मिला हुआ थाय़
एजेंसियों को बनाया विरोधियों के खिलाफ हथियार
ओली सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान देते थे, लेकिन साल 2020 में उन्होंने अपने वफादार माने जाने वाले पूर्व गृह सचिव प्रेम कुमार राय को सत्ता के दुरुपयोग की जांच आयोग (CIAA) का प्रमुख नियुक्त कर दिया। इसने लोगों को नाराज कर दिया। नेपाल को झकझोर देने वाले दो बड़े घोटालों में राय की कथित भूमिका के आरोप लगे थे। इनमें एक भूटानी शरणार्थी घोटाला और दूसरा बड़े विमानों की खरीद से जुड़ा मामला था।
ओली के वफादार राय ने CIAA को उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ हथियार बना दिया। ओली ने प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े बदलाव किए। खुफिया विभाग से लेकर राजस्व तक, कम से कम 9 जांच एजेंसियों को उन्होंने अपने अधीन कर लिया और उनका इस्तेमाल अपने विरोधियों के खिलाफ किया। यह गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा था, जो अब जाकर फूट पड़ा है।
ओली ने संकेतों को समझने से किया इनकार
हालांकि, उनकी कड़वी बयानबाजी और कठोर रवैये ने उन्हें लगातार अलोकप्रिय बना दिया था, लेकिन यह ऐसी चीज थी जिसे वह स्वीकार नहीं कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस में लिखे लेख में नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमिरे ने बताया कि ओली के खिलाफ खिलाफ नई पीढ़ी में लगातार गुस्सा बढ़ रहा था और उसे हवा मिली जब पिछले सप्ताह ओली मंत्रिमंडल ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया। ये प्लेटफॉर्म वह जगह थी, जहां युवा राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना गुस्सा निकाल रहे थे।
युवाओं पर गोलीबारी ने लिख दी अंत की कहानी
इस फैसले के बाद भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनकारी युवा, जिनमें अधिकांस 30 से कम उम्र के थे, सड़कों पर उतर गए। इस बारूद में चिंगारी डालने का काम किया, ओली सरकार की सोमवार को की गई बर्बर कार्रवाई ने, जिसमें 20 लोगों की मौत हुई। इनमें कुछ स्कूल यूनिफॉर्म में थे। इसने घटनाओं की ऐसी शृंखला शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप ओली को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
सोमवार रात को हुई आपात बैठक के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन सूचना मंत्री और UML नेता पीएस गुरुंग ने कहा कि ओली के पद छोड़ने का सवाल ही नहीं है। जाहिर है, ओली और उनके वफादारों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होने वाला था कि अगली सुबह क्या लेकर आने वाली है।
नेपाल की सत्ता पर कब्जे का खेल
नेपाल में ये गुस्सा नया नहीं था और इसे लेकर आवाज भी उठ रही थी, लेकिन सत्ता के नशे में ओली और उनके सिपहसालारों ने इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की। नेपाल की राजनीति में पिछले कई सालों से ओली नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा और सीपीएन (माओवादी सेंटर) के पुष्प कमल दहल प्रचंड बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करते रहे थे। इस तरह सभी शीर्ष नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ एक कवच मिला हुआ थाय़
एजेंसियों को बनाया विरोधियों के खिलाफ हथियार
ओली सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान देते थे, लेकिन साल 2020 में उन्होंने अपने वफादार माने जाने वाले पूर्व गृह सचिव प्रेम कुमार राय को सत्ता के दुरुपयोग की जांच आयोग (CIAA) का प्रमुख नियुक्त कर दिया। इसने लोगों को नाराज कर दिया। नेपाल को झकझोर देने वाले दो बड़े घोटालों में राय की कथित भूमिका के आरोप लगे थे। इनमें एक भूटानी शरणार्थी घोटाला और दूसरा बड़े विमानों की खरीद से जुड़ा मामला था।
ओली के वफादार राय ने CIAA को उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ हथियार बना दिया। ओली ने प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े बदलाव किए। खुफिया विभाग से लेकर राजस्व तक, कम से कम 9 जांच एजेंसियों को उन्होंने अपने अधीन कर लिया और उनका इस्तेमाल अपने विरोधियों के खिलाफ किया। यह गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा था, जो अब जाकर फूट पड़ा है।
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