काबुल/इस्लामाबाद: पिछले महीने पाकिस्तान से एक राउंड की लड़ाई लड़ने के बाद अब ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा तालिबान और पाकिस्तान के बीच के टेंशन को बढ़ा रहा है। अफगानिस्तान में अल-मदरसा अल-असरिया के छात्रों ने हाल ही में तालिबान के उप-मंत्री मोहम्मद नबी ओमारी को ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा गिफ्ट में दिया है। तालिबान के इस ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा अगर हकीकत बनता है तो आधे पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाएगा।
इस नक्शे में खैबर पख्तूनख्वा (KPK), गिलगित-बाल्टिस्तान (GB) और बलूचिस्तान सहित कई पाकिस्तानी प्रांतों को अफगानिस्तान का हिस्सा दिखाया गया। हालांकि, गिलगित-बाल्टिस्तान पीओके का हिस्सा है, जिसपर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस नक्शे का सामने आना इसलिए एक अलग तरह के युद्ध के शुरू होने का संकेत है, क्योंकि अभी तक अफगान, ग्रेटर अफगानिस्तान के सिर्फ सपने देखा करते थे और अगर नई पीढ़ी के छात्र, उस नक्शे के साथ सामने आते हैं, तो पता चलता है कि अब ये सपना असल में लोगों के भीतर घर बना चुका है।
ग्रेटर अफगानिस्तान के सपने से क्यों बढ़ेगा कलह?
'ग्रेटर अफगानिस्तान' या 'पश्तूनिस्तान' की थ्योरी सालों से अफगानों के मन में रही है। दरअसल, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के साथ लगने वाली सीमा रेखा डूरंड लाइन को मानने से इनकार करता है। आपको बता दें कि डूरंड लाइन को अंग्रेजो ने 1893 में अफगानिस्तान और तत्कालीन भारत को विभाजित करने के लिए खींचा था। लेकिन अफगानों ने हमेशा से डूरंड लाइन का विरोध किया है। अफगान राष्ट्रवादी उन पश्तून-बहुल क्षेत्रों पर अपना दावा करते हैं, जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा हैं। इसी मद्दे को लेकर अकसर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष होता रहा है।
पाकिस्तान और तालिबान के बीच हुए पिछले महीने के संघर्ष में भी डूरंड लाइन विवाद ही शामिल था। कतर और तुर्की ने फिलहाल पाकिस्तान और तालिबान के बीच संघर्ष विराम करवा रखा है, जिसके कभी भी टूटने का डर है। पाकिस्तान ने कहा कि तालिबान सरकार द्वारा कुछ "आश्वासन" दिए जाने के बाद सीमा पर युद्धविराम लागू रहेगा। वहीं, तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि "सभी पक्ष एक निगरानी और सत्यापन तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं जो शांति बनाए रखना सुनिश्चित करेगा और उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगाएगा।" मंत्रालय ने आगे कहा कि दोनों पक्ष 6 नवंबर को इस्तांबुल में एक उच्च-स्तरीय बैठक में फिर से मिलने की योजना बना रहे हैं ताकि युद्धविराम को कैसे लागू किया जाए, इस पर अंतिम रूप दिया जा सके।
तालिबान, खुफिया सूत्रों का क्या कहना है?
न्यूज-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष खुफिया और तालिबान सूत्रों का कहना है कि तालिबान, पिछली अफगान सरकारों की तरह, डूरंड रेखा को एक काल्पनिक रेखा मानता है और उसे वास्तविक रेखा नहीं मानता है। तालिबान, डूरंड लाइन को मान्यता नहीं देता है। सूत्रों ने कहा, "पाकिस्तान को इस रेखा के पूर्व के क्षेत्रों पर दावा करने का कोई वैध अधिकार नहीं है। तालिबान का मानना है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी युद्ध के दौरान अपनी रणनीतिक गहराई के लिए उनका, अफगानिस्तान की धरती और लड़ाकों का इस्तेमाल किया है।" न्यूज-18 के मुताबिक, "पाकिस्तान अब सीमावर्ती क्षेत्रों पर हमला करके और अफगान शरणार्थियों को देश से निकालकर दुश्मन बन चुका है। वहीं, ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा पेश करके, तालिबान नेतृत्व राष्ट्रीय गौरव का दावा करना चाहता है और काबुल की नीतियों को गाइड करने की पाकिस्तान की किसी भी कोशिश को जमींदोज कर रहा है।"
पाकिस्तान अभी तक 10 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल चुका है। तालिबान इसे अपमान के तौर पर देख रहा है। न्यूज-18 ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि "अमीरात (तालिबान सरकार) के अंदर अफगानिस्तान अब पाकिस्तान के हस्तक्षेप, खुफिया नियंत्रण या हुक्म को बर्दाश्त नहीं करेगा। तालिबान को पता है कि पाकिस्तान, सीमा पर आक्रमण और शरणार्थियों को देश से बाहर निकालकर उसे कमजोर कर रहा है। इसीलिए डूरंड रेखा को मिटाकर, तालिबान पाकिस्तान की औपनिवेशिक काल की वैधता को नकार रहा है।"
इस नक्शे में खैबर पख्तूनख्वा (KPK), गिलगित-बाल्टिस्तान (GB) और बलूचिस्तान सहित कई पाकिस्तानी प्रांतों को अफगानिस्तान का हिस्सा दिखाया गया। हालांकि, गिलगित-बाल्टिस्तान पीओके का हिस्सा है, जिसपर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस नक्शे का सामने आना इसलिए एक अलग तरह के युद्ध के शुरू होने का संकेत है, क्योंकि अभी तक अफगान, ग्रेटर अफगानिस्तान के सिर्फ सपने देखा करते थे और अगर नई पीढ़ी के छात्र, उस नक्शे के साथ सामने आते हैं, तो पता चलता है कि अब ये सपना असल में लोगों के भीतर घर बना चुका है।
ग्रेटर अफगानिस्तान के सपने से क्यों बढ़ेगा कलह?
'ग्रेटर अफगानिस्तान' या 'पश्तूनिस्तान' की थ्योरी सालों से अफगानों के मन में रही है। दरअसल, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के साथ लगने वाली सीमा रेखा डूरंड लाइन को मानने से इनकार करता है। आपको बता दें कि डूरंड लाइन को अंग्रेजो ने 1893 में अफगानिस्तान और तत्कालीन भारत को विभाजित करने के लिए खींचा था। लेकिन अफगानों ने हमेशा से डूरंड लाइन का विरोध किया है। अफगान राष्ट्रवादी उन पश्तून-बहुल क्षेत्रों पर अपना दावा करते हैं, जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा हैं। इसी मद्दे को लेकर अकसर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष होता रहा है।
पाकिस्तान और तालिबान के बीच हुए पिछले महीने के संघर्ष में भी डूरंड लाइन विवाद ही शामिल था। कतर और तुर्की ने फिलहाल पाकिस्तान और तालिबान के बीच संघर्ष विराम करवा रखा है, जिसके कभी भी टूटने का डर है। पाकिस्तान ने कहा कि तालिबान सरकार द्वारा कुछ "आश्वासन" दिए जाने के बाद सीमा पर युद्धविराम लागू रहेगा। वहीं, तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि "सभी पक्ष एक निगरानी और सत्यापन तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं जो शांति बनाए रखना सुनिश्चित करेगा और उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगाएगा।" मंत्रालय ने आगे कहा कि दोनों पक्ष 6 नवंबर को इस्तांबुल में एक उच्च-स्तरीय बैठक में फिर से मिलने की योजना बना रहे हैं ताकि युद्धविराम को कैसे लागू किया जाए, इस पर अंतिम रूप दिया जा सके।
तालिबान, खुफिया सूत्रों का क्या कहना है?
न्यूज-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष खुफिया और तालिबान सूत्रों का कहना है कि तालिबान, पिछली अफगान सरकारों की तरह, डूरंड रेखा को एक काल्पनिक रेखा मानता है और उसे वास्तविक रेखा नहीं मानता है। तालिबान, डूरंड लाइन को मान्यता नहीं देता है। सूत्रों ने कहा, "पाकिस्तान को इस रेखा के पूर्व के क्षेत्रों पर दावा करने का कोई वैध अधिकार नहीं है। तालिबान का मानना है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी युद्ध के दौरान अपनी रणनीतिक गहराई के लिए उनका, अफगानिस्तान की धरती और लड़ाकों का इस्तेमाल किया है।" न्यूज-18 के मुताबिक, "पाकिस्तान अब सीमावर्ती क्षेत्रों पर हमला करके और अफगान शरणार्थियों को देश से निकालकर दुश्मन बन चुका है। वहीं, ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा पेश करके, तालिबान नेतृत्व राष्ट्रीय गौरव का दावा करना चाहता है और काबुल की नीतियों को गाइड करने की पाकिस्तान की किसी भी कोशिश को जमींदोज कर रहा है।"
पाकिस्तान अभी तक 10 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल चुका है। तालिबान इसे अपमान के तौर पर देख रहा है। न्यूज-18 ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि "अमीरात (तालिबान सरकार) के अंदर अफगानिस्तान अब पाकिस्तान के हस्तक्षेप, खुफिया नियंत्रण या हुक्म को बर्दाश्त नहीं करेगा। तालिबान को पता है कि पाकिस्तान, सीमा पर आक्रमण और शरणार्थियों को देश से बाहर निकालकर उसे कमजोर कर रहा है। इसीलिए डूरंड रेखा को मिटाकर, तालिबान पाकिस्तान की औपनिवेशिक काल की वैधता को नकार रहा है।"
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