नई दिल्ली: मकान मालिक और किरायेदारों के बीच अधिकारों को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। एक आम सवाल जो लोगों के मन में उठता है, वह यह है कि क्या लंबे समय, जैसे 20 साल तक, किसी संपत्ति में बतौर किरायेदार रहने से उस संपत्ति पर किरायेदार का मालिकाना हक हो जाता है? इस महत्वपूर्ण विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्थिति को स्पष्ट किया है, जिससे मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के अधिकारों की व्याख्या हुई है।
क्या कहता है प्रतिकूल कब्जे का नियम?
दरअसल, संपत्ति पर कब्जे को लेकर एक कानूनी प्रावधान है जिसे “प्रतिकूल कब्जा” (Adverse Possession) कहा जाता है। यह ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के अंतर्गत आता है। इस नियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी निजी अचल संपत्ति पर लगातार 12 साल या सरकारी अचल संपत्ति पर 30 साल तक बिना किसी रोक-टोक के काबिज रहता है, तो वह उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है। यह अवधि कब्जे के दिन से शुरू मानी जाती है। कानून ऐसे व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुना सकता है जिसने अचल संपत्ति पर 12 वर्षों से अधिक समय से कब्जा कर रखा है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत एक मामले में सुनवाई करते हुए इस विषय पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी किरायेदार या सिर्फ कब्जाधारी का, मकान मालिक की संपत्ति पर कोई हक नहीं होता है। हालांकि, प्रतिकूल कब्जे का नियम एक अपवाद प्रस्तुत करता है। यदि कोई व्यक्ति 12 साल तक किसी संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जा रखता है, तो उसे संपत्ति पर अधिकार मिल सकता है और वह उसे बेचने का कानूनी हक भी पा सकता है।
किरायेदारों के मामले में क्या है स्थिति?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति बतौर किरायेदार किसी संपत्ति में रह रहा है और मकान मालिक के साथ उसका रेंट एग्रीमेंट (किरायानामा) बना हुआ है, तो किरायेदार उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता, चाहे वह कितने भी लंबे समय तक वहां क्यों न रहा हो। यदि मकान मालिक समय-समय पर रेंट एग्रीमेंट का नवीनीकरण कराता रहता है, तो उसकी संपत्ति सुरक्षित रहती है। रेंट एग्रीमेंट यह साबित करता है कि किरायेदार मकान मालिक की अनुमति से वहाँ रह रहा है और उसका कब्जा “प्रतिकूल” नहीं है।
मकान मालिकों के लिए सावधानी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले और कानूनी प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि मकान मालिकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। अपनी संपत्ति को किसी को भी रहने के लिए देते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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रेंट एग्रीमेंट अनिवार्य: हमेशा एक लिखित रेंट एग्रीमेंट बनवाएं, भले ही किरायेदार आपका कोई परिचित ही क्यों न हो।[][]
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एग्रीमेंट का नवीनीकरण: रेंट एग्रीमेंट को समय-समय पर (आमतौर पर 11 महीने के लिए) नवीनीकृत करवाते रहें।
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किराये का रिकॉर्ड रखें: किराये की रसीदें या बैंक ट्रांसफर का रिकॉर्ड अवश्य रखें।
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अतिक्रमण पर तुरंत कार्रवाई: यदि किरायेदार बिना अनुमति के या एग्रीमेंट समाप्त होने के बाद भी संपत्ति पर काबिज रहता है, तो कानूनी कार्रवाई करने में देरी न करें।
यदि किरायेदार किराया देना बंद कर देता है या संपत्ति पर मालिकाना हक जताने की कोशिश करता है, तो मकान मालिक को 12 साल की अवधि समाप्त होने से पहले कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
संक्षेप में, सिर्फ लंबे समय तक किरायेदार के तौर पर रहने से किसी संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं मिल जाता, खासकर तब जब वैध रेंट एग्रीमेंट मौजूद हो और मकान मालिक अपने अधिकारों के प्रति सजग हो। प्रतिकूल कब्जे का नियम विशिष्ट परिस्थितियों में ही लागू होता है और इसके लिए कई कानूनी शर्तों का पूरा होना आवश्यक है।
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