मान लीजिए, किसी सुबह अलार्म नहीं बजा। अचानक ही दिन की शुरुआत अस्त-व्यस्त हो गई। घर के काम एक तरफ, बाहर के अधूरे काम दूसरी तरफ। ऑफिस में आपका बॉस रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहा है, और उसी वक्त पीठ का पुराना दर्द भी दस्तक दे देता है। सब कुछ एक साथ ढहता हुआ-सा लगता है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आप फिर भी किसी तरह इन सब मुश्किलों से उबर जाते हैं।
कभी सोचा है, यह हिम्मत कहां से आती है? यह क्षमता कि आप रोज़मर्रा की चुनौतियों, परेशानियों और संघर्षों के बीच भी डटे रहते हैं और आगे बढ़ते हैं। वैदिक ज्योतिष में इसका जवाब छठे भाव में छिपा है। छठा भाव, जिसे शत्रु भाव या रिपु भाव कहा जाता है, जीवन के उसी पक्ष को नियंत्रित करता है जहां अनुशासन, कठिनाइयां और संघर्ष मौजूद होते हैं। यह भाव बताता है कि आप अपने आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से कैसे मुकाबला करते हैं। अपने स्वास्थ्य, कामकाज और दैनिक जीवन को कैसे संभालते हैं। साथ ही, छठा भाव सेवा-भावना का भी प्रतीक है, यानी कठिनाइयों से गुजरते हुए भी दूसरों की मदद करने और कर्तव्य निभाने की शक्ति। यही कारण है कि जब जिंदगी आपको अचानक परखने लगती है तो यह भाव आपके भीतर वह साहस जगाता है, जो आपको हर मुश्किल पार करने का रास्ता दिखाता है।
ज्योतिष में, छठा भाव जीवन की चुनौतियों और बाधाओं का महत्वपूर्ण केंद्र माना गया है। इसे अक्सर शत्रुता, प्रतिस्पर्धा, ऋण और दैनिक संघर्षों का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि यह भाव हमें जीवन में आने वाली मुश्किलों, कठिनाइयों और कभी-कभी अचानक आने वाली परेशानियों के बारे में गहराई से जानकारी देता है। दिलचस्प बात यह है कि यदि कोई ग्रह, जो स्वाभाविक रूप से पापी या क्रूर (सूर्य, मंगल, शनि, राहु-केतु) छठे भाव में स्थित होता है, तो वह इस भाव के नकारात्मक प्रभावों को कम कर देता है। ऐसे में व्यक्ति न केवल इन बाधाओं का सामना करने में सक्षम होता है, बल्कि इन परिस्थितियों को अवसर में बदलने की क्षमता भी विकसित करता है। इसके अलावा छठे भाव में ग्रहों की यह स्थिति रोज़मर्रा की चुनौतियों, कार्यस्थल पर प्रतिस्पर्धा और जीवन के अन्य व्यावहारिक पहलुओं में अनुकूल परिणाम प्रदान करती है। इसका मतलब यह है कि व्यक्ति अपने कार्यों में अधिक एकाग्र, अनुशासित और परिणाम-संपन्न बनता है। सरल शब्दों में, छठा भाव न केवल संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह शक्ति, साहस और सफलता का मार्गदर्शक भी है।
पाराशर ऋषि के अनुसार, षष्ठ भाव सौतेली माता को सूचित करता है। यह भाव इंद्रियों से भी संबंधित होता है। स्त्री की कुंडली में चरित्रहीनता, गर्भपात, अकाल प्रसव आदि इस भाव से संबंधित होते है। इस भाव से रोग (बीमारी), रिपु (शत्रु) और ऋण (कर्ज) के साथ ही शत्रुओं से परेशानी, चोट और घाव, कानूनी मुकदमेबाजी, दुख और चिंता, मामा और ममेरे भाई-बहन, सेनाएं, दुर्घटनाएं, बाधाएं, सेवा और रोजगार, नौकर और सेवक दुर्गति और दुर्भाग्य, चरित्रहनन, वस्त्र, अपमान और चुनौतियों से लड़ने के लिए साहसी रवैया आदि का भी विचार किया जाता है।
षष्ठम भाव और ज्योतिषीय सिद्धांत
सामान्यत: षष्ठम भाव यानी छठा भाव अशुभ माना जाता है। ज्योतिष में सबसे अशुभ तीन भाव हैं, अष्टम, षष्ठम और द्वादश। इनमें अष्टम भाव सबसे अधिक अशुभ माना जाता है, जबकि षष्ठम भाव दूसरे स्थान पर है और द्वादश भाव तीसरे। आम बोलचाल में इन भावों को ‘दुः स्थान’ भी कहा जाता है।
अगर इस भाव में कोई ग्रह या दृष्टि नहीं है, तो भी आप इसकी राशि देखकर कुछ ऐसे पैटर्न या व्यवहार पहचान सकते हैं जो जातक पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। छठे भाव में यदि कोई ग्रह मजबूत हो तो व्यक्ति अक्सर कर्ज़ या ऋण लेने की प्रवृत्ति रखता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि छठा भाव नकारात्मक प्रभाव रखता है और मजबूत ग्रह इस ओर प्रेरित कर सकते हैं। इससे व्यक्ति गरीबी या इस भाव से जुड़ी अन्य समस्याओं का सामना कर सकता है, और कभी-कभी दिवालियापन भी हो सकता है। छठे भाव की से संबंधित कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नवत हैं:-
- बाधाएं और चुनौतियां: छठा भाव जीवन में आने वाली मुश्किलों, शत्रुता और ऋण का प्रतिनिधित्व करता है।
ग्रहों का प्रभाव: यदि पापी ग्रह यहां मजबूत हो, तो यह नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है और प्रतियोगिता या कार्यों में सफलता दिला सकता है।
सेवा और पोषण: यह भाव उन तरीकों को दिखाता है जिनसे आप दूसरों की मदद करते हैं या भविष्य में सेवा करने से लाभ उठा सकते हैं।
दैनिक जीवन: नौकरी, स्वास्थ्य, आहार और व्यायाम जैसी दिनचर्या की जिम्मेदारियाँ छठे भाव से जुड़ी हैं।
अप्रत्याशित परिस्थितियां: बीमारी, बेरोज़गारी या अन्य चुनौतियां भी इसी भाव से जुड़ी हैं, जो आपको तैयार रहने की सीख देती हैं।
कन्या राशि का प्रभाव: विश्वसनीयता, जिम्मेदारी और आत्म-सुधार की प्रेरणा देती है; स्वास्थ्य और काम में उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करती है।
लक्ष्य और अनुशासन: अध्ययन, कार्य या किसी योजना को पूरा करने के लिए मेहनत और व्यवस्थित दृष्टिकोण सिखाती है।
सार्वजनिक जीवन: जनता का स्वास्थ्य, न्याय, राजनीति और सामाजिक समरसता भी छठे भाव से संबंधित हैं।
धन और मानसिक स्थिति: यह धन, वेतन, प्रतियोगिता और मानसिक चिंता या शत्रुता का भी संकेत देता है।
सामान्यतः छठे भाव में अगर शुभ ग्रह स्थित हों, तो यह आपके शत्रुओं को हराने और रोगों को दूर करने की ताकत रखते हैं। नए रोग उभरने का डर भी कम हो जाता है। साथ ही, दशम, सप्तम और चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह रोगों को ठीक करने में मदद करते हैं। यदि लग्नेश और चंद्रमा भी शुभ भाव में हों, तो शरीर पूरी तरह से स्वस्थ रहेगा और बीमारी का असर नहीं रहेगा।
वहीं, छठे भाव में पाप ग्रह की स्थिति शासित अंगों में घाव या अल्सर, कमर और नाभि में दर्द, शत्रुओं या चोरी का भय और कार्यों में बाधाओं का संकेत देती है। इसके साथ ही यह ग्रह उन बीमारियों का भी इशारा करता है जिनकी प्रवृत्ति इस स्थिति से जुड़ी होती है।
ज्योतिष में रोग संबंधी प्रश्नों में, पाप ग्रह रोग को और गंभीर बना सकते हैं। यदि पाप ग्रह दशम भाव में हों, तो व्यक्ति की अपनी गलती के कारण उपचार प्रभावी नहीं होगा। सप्तम या चतुर्थ भाव में पाप ग्रह होने पर एक जटिलता दूसरी जटिलता को जन्म दे सकती है। कुंडली में विभिन्न भावों का महत्व इस प्रकार है: लग्न – चिकित्सक, सप्तम – रोग, दशम – रोगी, और चतुर्थ – औषधि या उपचार। यदि लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो रोग सामान्य उपचार से ठीक नहीं होगा।
छठे भाव में ग्रहों का फल
यदि आपके छठे भाव में ग्रह स्थित हैं तो इसका प्रभाव आपके काम, स्वास्थ्य और रोज़मर्रा की दिनचर्या पर विशेष रूप से दिखाई देता है। यह दिखाता है कि आप किन क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं और किन क्षेत्रों में आपको चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
सूर्य: सूर्य का षष्ठम भाव में होने का अर्थ है कि जातक स्वभाव से ज़िम्मेदार हैं और व्यवस्था रखना आपके लिए स्वाभाविक है। नियमों का पालन करना जातक के लिए महत्वपूर्ण है और लोग उस पर भरोसा कर सकते हैं। ऐसा जातक हार, विफलता, दुख, रोग और कर्ज आदि से मुक्त होता है।
चंद्रमा: छठे भाव में चंद्रमा होने पर जीवन की शुरुआत में ही जातक व्यक्तिगत जिम्मेदारी का महत्व समझ लेता है। ऐसा जातक जीवन का पूर्ण आनंद उठाता है। निर्बली चंद्रमा कष्ट, अल्पायु, पाचन शक्ति में निर्बलता, आलस्य आदि समस्याएं दे सकता है।
मंगल: छठे भाव में मंगल होने पर जातक शरीर से सक्रिय रहने पर ज्यादा ऊर्जा महसूस करता हैं। व्यायाम करना और रोज़मर्रा के काम करना उसे पसंद होता है। इस भाव में अच्छी स्थिति में मंगल होने पर जातक प्रशासक, राजनीतिज्ञ और खेल-कानूनी लड़ाइयों में विजयी रहता है।
बुध: कालपुरुष की कुंडली में षष्ठम भाव बुध की स्वामित्व राशि कन्या का भाव है। यानी बुध की यहां उच्च की स्थिति में होता है। छठे भाव में बुध होने पर जातक तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है। पीड़ित बुध जातक को रोगी और शिक्षा में बाधा देता है।
बृहस्पतिः छठे भाव में स्थित बली बृहस्पति अतिशुभ होता है। ऐसा जातक धनवान और विरोधियों पर नियंत्रण रखने वाला होता है। कमजोर या पीड़ित बृहस्पति शुगर, जिगर, खून और पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां दे सकता है।
शुक्रः छठे भाव में शुक्र होने पर जातक का कोई शत्रु नहीं होता है। ऐसा जातक समृद्ध और धनवान होता है। पीड़ित या कमजोर शुक्र होने पर अत्यधिक खर्चीला होने के कारण जातक दरिद्रता, कर्ज और मानसिक अवसाद से पीड़ित हो सकता है।
शनिः यदि छठे भाव में शनि हो तो ऐसा जातक शत्रुओं, चोरों आदि से भयभीत नहीं होता है। वह अद्वितीय सैनिक हो सकता है। पीड़ित शनि दुर्घटनाएं और झगड़ालू प्रवृत्ति देता है।
राहुः छठे भाव में राहु सभी शत्रुओं का नाश कर देता है। जातक बली, विद्वान, साहसिक होता है।
केतुः छठे भाव में केतु की स्थिति केतु के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति होती है। ऐसा जातक अपने जीवन में कभी न समाप्त होने वाले यश और कीर्ति को अर्जित करता है।
छठे भाव से जुड़े महत्वपूर्ण योग
विपरीत राज योग:
यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी इनमें से किसी एक भाव में बैठता है, तो यह जीवन में बदलाव लाता है। जातक विपरीत परिस्थितियों से ऊपर उठने और मुश्किलों को पार करने में सक्षम होता है।
रुचक योग:
छठे भाव में उच्च या स्वराशि का मंगल शत्रुओं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर विजय पाने के लिए अपार साहस देता है।
शत्रुहंता योग:
जब कोई शुभ ग्रह छठे भाव को देखता है और पाप ग्रह तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में होते हैं, तो यह योग प्रतिद्वंद्वियों पर विजय पाने में मदद करता है।
छठे भाव से जुड़े परेशान करने वाले कुछ सवाल
सवाल: क्या छठा भाव सिर्फ बाधाएं और समस्याएं लाता है?
जवाब: बिल्कुल नहीं! हालांकि छठा भाव शत्रु, बीमारी और कर्ज़ जैसी चुनौतियों से जुड़ा होता है, यह आपके भीतर अपार शक्ति का स्रोत भी है। यह दिखाता है कि आप विपरीत परिस्थितियों से कैसे निपटते हैं, दूसरों की मदद कैसे करते हैं, और अनुशासन व नियमित दिनचर्या के माध्यम से कैसे आगे बढ़ते हैं। मज़बूत छठा भाव या उसका स्वामी अक्सर ऐसे व्यक्ति का संकेत देता है जो चिकित्सक, योद्धा या संघर्ष के जरिए अपनी राह बनाता है। अच्छी स्थिति में यह भाव आपको कठिनाइयों को पार करने और बाधाओं को अवसरों और उपलब्धियों में बदलने की शक्ति देता है।
सवाल: छठे भाव में कौन से ग्रह चुनौतियों में चमकते हैं?
जवाब: छठे भाव में अक्सर मंगल, शनि और राहु अच्छे फल देने वाले होते हैं। इनका आक्रामक और तीव्र स्वभाव कठिन परिस्थितियों और टकराव में सहनशीलता दिखाने के लिए बिलकुल सही होता है। ऐसे ग्रह योद्धा, रणनीतिकार या दबाव में पनपने वाले व्यक्ति का संकेत देते हैं। साथ ही, बुध और चंद्रमा भी अच्छी स्थिति में होने पर सेवा, संचार या चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में सफलता दिला सकते हैं। हाँ, शुभ ग्रहों को कभी-कभी छठे भाव में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जब तक कि उन्हें शक्ति और अनुकूल पहलुओं का समर्थन न मिले।
सवाल: छठा भाव रिश्तों और विवाह को कैसे प्रभावित करता है?
जवाब: छठा भाव संघर्ष, कानूनी मसले और अलगाव जैसी चुनौतियों से जुड़ा होता है। यदि यह सप्तम भाव (विवाह) या शुक्र से जुड़ा हो, तो यह रिश्तों में विवाद या बाहरी हस्तक्षेप का संकेत दे सकता है। लेकिन अच्छी स्थिति में छठा भाव यह भी दिखा सकता है कि आप किसी रिश्ते में चुनौतियों का सामना समझदारी और रचनात्मक तरीके से कर सकते हैं। ध्यान रहे, सही व्याख्या के लिए पूरी कुंडली और उसकी ताकत को देखना जरूरी होता है।
वैदिक ज्योतिष में खाली छठा भाव स्वाभाविक रूप से अच्छा या बुरा नहीं माना जाता। यह केवल दर्शाता है कि इस भाव की ऊर्जा आपके जीवन में पीछे से काम कर सकती है, न कि सीधे केंद्र में। छठे भाव का असली प्रभाव उसके स्वामी, राशि और गोचर या दशाओं पर निर्भर करता है। इसे समझने के लिए पूरी जन्म कुंडली का विश्लेषण करना ज़रूरी है, क्योंकि ज्योतिष एक समग्र विज्ञान है और हर कुंडली अपने आप में अनूठी होती है। यही कारण है कि जीवन में छठे भाव का सही मायने में प्रभाव जानने के लिए केवल इस भाव को ही नहीं, बल्कि पूरी कुंडली को देखना महत्वपूर्ण है।
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