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वाराणसी: पितृ पक्ष में द्वितीया तिथि का श्राद्ध, लोगों ने पितरों काे दिया तर्पण

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– पिशाचमोचन कुंड और गंगा तट पर उमड़ी लाेगाें की भीड़

वाराणसी, 09 सितंबर (Udaipur Kiran) । सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण पक्ष पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। धार्मिक नगरी काशी में पितृपक्ष के द्वितीया तिथि श्राद्ध के लिए मंगलवार को लाेगाें की भीड़ गंगाघाटों और पिशाचमोचन कुंड पर अलसुबह से ही उमड़ती रही। धूप और उमस भरे मौसम में गंगा तट और अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए लोग अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। यहां देश के कोने-कोने से वाराणसी पहुंचे लाेगाें ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म किया। अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों के लिए उनके परिवारीजनाें ने कर्मकांडी ब्राह्मणों की सहायता से त्रिपिंडी श्राद्ध कराया।

पिशाचमोचन कुंड के कर्मकांडी सनी मिश्र और राजेश उपाध्याय ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में किए गए अनुष्ठान से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृ दोष का शमन होता है और पूर्वजों की आत्मा को परम शांति प्राप्त होती है। पितृपक्ष की द्वितीया तिथि श्राद्ध में उन पूर्वजों का श्राद्ध होता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो। श्राद्ध के बाद गरीब ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देने की भी परंपरा है।

सर्वपितृ अमावस्या तक चलेगा श्राद्ध पक्ष

पितृ पक्ष की यह पुण्य अवधि 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ संपन्न होगी। जिन लोगों को अपने पितरों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, वे पूरे पखवाड़े प्रतिदिन तर्पण करते हैं और अंतिम दिन पितृ विसर्जन करते हैं। लाेगाें ने भाद्रपद पूर्णिमा के दिन ही अपने मातृकुल के पितरों-नाना, नानी, परनाना, परनानी-का तर्पण कर पितृ पक्ष का शुभारंभ कर दिया था।

श्रद्धा और कर्म से ही तृप्त होते हैं पितर

सनातन धर्म की मान्यता है कि श्रद्धा और विधि-विधानपूर्वक किया गया श्राद्ध कर्म पूर्वजों को तृप्त करता है। पितरों की प्रसन्नता से वंश वृद्धि, सुख-शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। प्रत्येक वंशज को कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य कराना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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