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अरबों डॉलर की तीस्ता मेगा परियोजना बहुआयामी आपदा को देगी जन्म, जल एवं पर्यावरण विशषज्ञों ने चेताया

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ढाका, 05 सितंबर (Udaipur Kiran) । प्रतिष्ठित जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अरबों डॉलर की तीस्ता मेगा परियोजना बहुआयामी आपदा को जन्म देगी। साथ ही मुट्ठी भर लोगों के एक समूह को अंतहीन मुनाफा कमाने का अवसर भी प्रदान करेगी। यही नहीं इस परियोजना से लोगों, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और बांग्लादेश के राजनयिक संबंधों को भी नुकसान पहुंच सकता है।

ढाका ट्रिब्यून अखबार की खबर के अनुसार, परियोजना सामग्री, व्यवहार्यता अध्ययन और समाचारों को आधार बनाकर विशेषज्ञों ने इसके संभावित पहलुओं का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला है कि यह न तो तकनीकी रूप से सही है, न ही वैज्ञानिक रूप से सही और न ही पर्यावरणीय रूप से उचित। विशेषज्ञों को आशंका है कि जिन संकटों के कारण इस परियोजना को शुरू से ही लागू करना जरूरी था, जैसे कि अचानक बाढ़, नदी तट का कटाव और कम वर्षा वाले मौसम में पानी की कमी, वे और भी बदतर हो जाएंगे।

पेंसिल्वेनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में भू-विज्ञान पढ़ाने वाले मोहम्मद खलीकुज्जमां ने कहा, यह परियोजना बांग्लादेश को तीस्ता नदी की निरंतर तलकर्षण और उसके तटों की निरंतर मरम्मत और रखरखाव जैसी जरूरतों से रूबरू कराएगी। उन्होंने कहा, इससे ठेकेदारों, प्रबंधकों, राजनेताओं और चीन की सरकार को लाभ होगा।

उल्लेखीय है कि चीन की सरकारी कंपनी पावर चाइना से पर्याप्त ऋण और तकनीकी सहायता आकार लेने वाली तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और पुनरुद्धार परियोजना का उद्देश्य 114 किलोमीटर लंबे तटबंध बनाकर और इसकी चौड़ाई को अधिकतम एक किलोमीटर तक करना है। नदी की वर्तमान औसत चौड़ाई तीन किलोमीटर है। इस परियोजना का उद्देश्य 170 वर्ग किलोमीटर भूमि को पुनः प्राप्त करना, बाढ़ और नदी तट के कटाव को नियंत्रित करना और नौवहन एवं सिंचाई को बढ़ाना है। साथ ही एक नहर भी बनाई जाएगी। नदी के किनारों पर 100 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तक तटबंध बनाए जाएंगे।

विशेषज्ञों का तर्क है कि बांग्लादेश में चाहे जितने जतन किए जाएं तीस्ता की मुख्य समस्या का समाधान नहीं हो सकता। कम वर्षा वाले मौसम में पानी की कमी की समस्या खत्म नहीं होगी। पूर्वी हिमालय से सफर शुरू करने वाली तीस्ता नदी के जलग्रहण क्षेत्र का लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पूरे जलग्रहण क्षेत्र का 17 प्रतिशत है और यह बांग्लादेश के अधीन है। अवरोधों, बैराज और ऊपरी भारतीय राज्यों सिक्किम और पश्चिम बंगाल में पानी की निकासी के कारण पिछले दशकों में तीस्ता में प्रवाह और तलछट जमाव क्रमशः 60 बीसीएम और 49 मीट्रिक टन से घटकर 25 बीसीएम और तीन मीट्रिक टन रह गया है।

मोहम्मद खलीकुज्जमां ने नदी तल को गहरा करने के बाद उसके प्रस्तावित मुख्य चैनल में जो पानी उपलब्ध हो सकता है, वह उथला भूजल ही है। यदि नीचे की ओर कोई बांध या बैराज बनाया जाता है तो अतिरिक्त जल संग्रहण संभव होगा, लेकिन इस मेगा परियोजना में ऐसी कोई योजना नहीं है।

ब्यूएट स्थित जल एवं बाढ़ प्रबंधन संस्थान के प्रो. एकेएम सैफुल इस्लाम ने कहा, नदी के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप करने से कई पर्यावरणीय परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि नदी के किनारों को कंक्रीट से ढकने से भूजल पुनर्भरण और बाढ़ के मैदान से पानी की निकासी बाधित होगी। इससे पूरी पारिस्थितिकी प्रभावित होगी। विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की कि यह विशाल परियोजना, ऊपरी धारा से अधिकांश प्राकृतिक जल प्रवाह प्राप्त किए बिना, सीमा पार जल विवाद को सुलझाने का प्रयास करके, तीस्ता के जल पर भारत के एकतरफा नियंत्रण को वैधता प्रदान करेगी।

खलीकुज्जमां ने अपने विश्लेषण में लिखा, तीस्ता केवल जल परिवहन का माध्यम नहीं है। वह भू-गर्भीय रूप से सक्रिय पहाड़ों से भारी मात्रा में तलछट के साथ उच्च वर्षा और कई नदियों को जन्म देती है। तीस्ता नदी अपने आकार के हिसाब से असामान्य रूप से अधिक मात्रा में तलछट वहन करती है, इसलिए संभावना है कि संकरी जलधारा तलछट की मात्रा से भर जाएगी, जिससे अंततः रेत के टीले बन जाएंगे।

विश्लेषण में कहा गया है, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नदी की औसत चौड़ाई तीन किलोमीटर से घटाकर 700 मीटर करने से प्रवाह वेग और नदी तट पर कटाव बढ़ेगा। इसके पुलों के ऊपर की ओर जल जमाव के कारण बाढ़ की तीव्रता भी बढ़ेगी। जल विशेषज्ञ ऐनुन निशात ने कहा कि जल कानून में ऐसी किसी भी परियोजना को मंजूरी देने से पहले तीस्ता निवासियों, जल संसाधन विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों और नागरिक समाज के सदस्यों से परामर्श करने का प्रावधान है। उन्होंने कहा, लेकिन हमें नहीं पता कि इस परियोजना के लिए सरकार के मन में क्या है।

वाटर कीपर्स बांग्लादेश के प्रमुख शरीफ जमील ने कहा कि इस परियोजना को तब तक रोक दिया जाना चाहिए जब तक कि यह लोगों के हितों और पर्यावरण की रक्षा के लिए ज़रूरी न साबित हो जाए। उन्होंने कहा, यह परियोजना भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र से संबंधित है, जिसने लंबे समय से एशिया के कट्टर प्रतिद्वंद्वियों भारत और चीन के हितों को आकर्षित किया है। उन्होंने कहा, ऊपरी नदी पर स्थित देश से पानी का उचित हिस्सा लिए बिना तीस्ता को जीवित रखना असंभव है।

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(Udaipur Kiran) / मुकुंद

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