नई दिल्ली/मुंबई (अनिल बेदाग): उत्तर पूर्व दिल्ली के सांसद और भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार मनोज तिवारी ने आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस खास मौके पर उन्होंने पीएम को बाबा वैद्यनाथ धाम का पवित्र प्रसाद पेंडा भेंट किया। मनोज तिवारी ने हाल ही में 110 किलोमीटर की कांवड़ यात्रा रिकॉर्ड समय में पूरी की, जो उनकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इस मुलाकात में उनकी पत्नी सुरभी तिवारी भी उनके साथ थीं।
रिकॉर्ड समय में पूरी की कांवड़ यात्रामनोज तिवारी ने बिहार के अजगैबी नाथ धाम, सुल्तानगंज से पवित्र जल लेकर बाबा वैद्यनाथ धाम तक पैदल यात्रा की। इस 110 किलोमीटर की यात्रा को उन्होंने मात्र 55 घंटों में पूरा किया, जबकि आमतौर पर इसमें 72 घंटे लगते हैं। भगवान शिव को जल चढ़ाने के बाद, तिवारी ने दिल्ली लौटकर प्रधानमंत्री से समय मांगा और उन्हें यह पवित्र प्रसाद भेंट किया। इस मुलाकात में उनकी पत्नी सुरभी भी शामिल थीं।
सोशल मीडिया पर साझा की भावनाएंमनोज तिवारी ने फेसबुक और एक्स पर एक भावुक पोस्ट साझा की। उन्होंने लिखा, “नंगे पांव चलने वाले सभी कांवड़ियों की ओर से हमने आज विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता, मानवता और शांति के प्रबल समर्थक, भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला जी को बाबा वैद्यनाथ धाम का प्रसाद पेंडा भेंट किया। प्रसाद पाकर पीएम मोदी ने ‘हर हर महादेव’ का उद्घोष किया और बहुत खुश नजर आए।”
उन्होंने आगे बताया कि पीएम ने कांवड़ यात्रा और कांवड़ियों का हालचाल भी पूछा। इस दौरान तिवारी ने अपनी 4.5 साल की बेटी सान्विका की बनाई एक खूबसूरत पेंटिंग भी प्रधानमंत्री को भेंट की।
भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने इस कांवड़ यात्रा को बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में पूरा किया। उनके पैरों में छाले पड़ गए, लेकिन उनकी भक्ति और दृढ़ निश्चय ने उन्हें रुकने नहीं दिया। 31 जुलाई से शुरू हुई यह यात्रा 2 अगस्त को पूरी हुई। खास बात यह है कि संसद के मानसून सत्र के बीच में उन्होंने यह यात्रा की और जल चढ़ाने के तुरंत बाद अगले ही दिन संसद सत्र में हिस्सा लिया। एक सेलिब्रिटी और सांसद के रूप में ऐसी यात्रा करने वाले वह पहले व्यक्ति हैं।
भक्ति और कर्तव्य का अनूठा संगममनोज तिवारी की इस कांवड़ यात्रा और प्रधानमंत्री को प्रसाद भेंट करने की घटना ने उनके भक्ति और कर्तव्य के प्रति समर्पण को दर्शाया है। यह यात्रा न केवल उनकी आस्था को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि वह अपने संसदीय कर्तव्यों के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों से भी गहरे जुड़े हैं।
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